आज विषय को थोडा बदलते हैं।
क्या कारण हैं की मोदी सरकार जो कुछ भी करती हैं वोह निन्दनीय हो जाता हैं।
मसलन अगर आपको बोला जाये की सफाई रखिये। समय पर ऑफिस जाये । भ्रस्टाचार न करे । गरीबो के बैंक कहते खोलें । उनका बीमा करे। योग करे। अगर आतंक की गतिविधिया हो तो उसका मुँह तोड़ जवाब दे। संसद को चलने दे । चर्चा करे । भारत मैं मैन्युफैक्चरिंग बढे। काला धन के खिलाफ कानून लाये। आदि इत्यादी ।
हर कदम को लोकतंत्र पे हमला बोला जाये। भारत की विविधता को खतरे मैं बताया जाये। पोर्न बन को नागरिको के नैतिक अधिकारो का हनन करार दिया जाये। चर्च पर निजी लोगो द्वारा निजी कुंठा मैं किये गए कार्यो को अल्पसंख्यो पर हमला बोला जाये। कुछ अप्रासंगिक साधुओ और साध्वियो के निन्दनीय व्यक्तव्यो को पूरे धर्म का व्यक्तत्व मान लेना।
एक लेख अभी पढ़ा जिसमे लेखक की यह भावना हैं की अव्यवस्था अनवरत चलने वाली बहस और पुरानी शासन व्यवस्था वापस आनी चाहिए।
क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए कुछ हो न हो पर यह होना चाहिए या वो होना चाहिए। किसी का विकास किसी का विनाश क्यों समझना चाहिए। हर सैटेलाइट लांच को हैंडपंप लगाने से जोड़ा क्यों जाना चाहिए। अपनी सुरक्षा मैं खर्च को शिक्षा के मुद्धे से क्यों जोड़ा जाना चाहिए।
हर बार जब न बचे कोई दलील तो 2002 आना चाहिए फिर गोधरा आना चाहिए फिर मुम्बई धमाके फिर याकूब की फाँसी फिर 1989 की गोली बारी फिर जन्म स्थान का ताला खुलना शाहबानो का होना राजीव इंदिरा की नृशंश हत्या प्रभाकरन और भिंडरावाले का उधभव और पराभव बाबरी का गिरना और मीर बाकी का जिक्र कहा से कहा तक जायेंगे हम । क्रिया से होने वाली प्रतिक्रिया और बड़े बरगद के गिरने से उठने वाले मामूली भूचलो से होने वाली कभी ना खत्म होने वाली टीवी के बहसे।
क्या हैं क्या होगा ।
जो होगा सो होगा बाकी तो कुछ न कुछ होगा ।
10 August 2015
क्या कारण हैं की मोदी सरकार जो कुछ भी करती हैं वोह निन्दनीय हो जाता हैं।
मसलन अगर आपको बोला जाये की सफाई रखिये। समय पर ऑफिस जाये । भ्रस्टाचार न करे । गरीबो के बैंक कहते खोलें । उनका बीमा करे। योग करे। अगर आतंक की गतिविधिया हो तो उसका मुँह तोड़ जवाब दे। संसद को चलने दे । चर्चा करे । भारत मैं मैन्युफैक्चरिंग बढे। काला धन के खिलाफ कानून लाये। आदि इत्यादी ।
हर कदम को लोकतंत्र पे हमला बोला जाये। भारत की विविधता को खतरे मैं बताया जाये। पोर्न बन को नागरिको के नैतिक अधिकारो का हनन करार दिया जाये। चर्च पर निजी लोगो द्वारा निजी कुंठा मैं किये गए कार्यो को अल्पसंख्यो पर हमला बोला जाये। कुछ अप्रासंगिक साधुओ और साध्वियो के निन्दनीय व्यक्तव्यो को पूरे धर्म का व्यक्तत्व मान लेना।
एक लेख अभी पढ़ा जिसमे लेखक की यह भावना हैं की अव्यवस्था अनवरत चलने वाली बहस और पुरानी शासन व्यवस्था वापस आनी चाहिए।
क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए कुछ हो न हो पर यह होना चाहिए या वो होना चाहिए। किसी का विकास किसी का विनाश क्यों समझना चाहिए। हर सैटेलाइट लांच को हैंडपंप लगाने से जोड़ा क्यों जाना चाहिए। अपनी सुरक्षा मैं खर्च को शिक्षा के मुद्धे से क्यों जोड़ा जाना चाहिए।
हर बार जब न बचे कोई दलील तो 2002 आना चाहिए फिर गोधरा आना चाहिए फिर मुम्बई धमाके फिर याकूब की फाँसी फिर 1989 की गोली बारी फिर जन्म स्थान का ताला खुलना शाहबानो का होना राजीव इंदिरा की नृशंश हत्या प्रभाकरन और भिंडरावाले का उधभव और पराभव बाबरी का गिरना और मीर बाकी का जिक्र कहा से कहा तक जायेंगे हम । क्रिया से होने वाली प्रतिक्रिया और बड़े बरगद के गिरने से उठने वाले मामूली भूचलो से होने वाली कभी ना खत्म होने वाली टीवी के बहसे।
क्या हैं क्या होगा ।
जो होगा सो होगा बाकी तो कुछ न कुछ होगा ।
10 August 2015
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