Tuesday, September 18, 2018

कुछ सच कुछ झूठ

कुछ सच कुछ झूठ

हर कोई सच्चाई से सच्चाई का साथ देना चाहता है 

लेकिन सच्चाई है अकेली अलग थलग पड़ी हैं


सब सच बोल रहे हैं शायद की वो सच बोल रहे हैं

फिर जो झूठ बोल रहे हैं वो भी सच हैं शायद


समय सब अपना खुद ही तय कर लेते हैं

सच कब सहूलियत हैं झूठ कब सहूलियत हैं


सच का साथ देंगे यह झूठ नही है 

पर कब देंगे यह पता नही हैं


कहानी तय हैं क्या कहनी हैं 

तोला माशा सच और झूठ का बस बैठाना हैं


अंतरात्मा भी अजीब सा स्वभाव रखती हैं

गिरगिट के जैसे हो गई हैं


सच्चाई वही हैं जहाँ पहले थी

अलग थलग ठंडी बेसुध सी


झूठ झूम रहा हैं, भीड़ हैं गर्मी है

अपना सा हैं अपना ही हैं




13 जनवरी 2018

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