कुछ सच कुछ झूठ
हर कोई सच्चाई से सच्चाई का साथ देना चाहता है
लेकिन सच्चाई है अकेली अलग थलग पड़ी हैं
सब सच बोल रहे हैं शायद की वो सच बोल रहे हैं
फिर जो झूठ बोल रहे हैं वो भी सच हैं शायद
समय सब अपना खुद ही तय कर लेते हैं
सच कब सहूलियत हैं झूठ कब सहूलियत हैं
सच का साथ देंगे यह झूठ नही है
पर कब देंगे यह पता नही हैं
कहानी तय हैं क्या कहनी हैं
तोला माशा सच और झूठ का बस बैठाना हैं
अंतरात्मा भी अजीब सा स्वभाव रखती हैं
गिरगिट के जैसे हो गई हैं
सच्चाई वही हैं जहाँ पहले थी
अलग थलग ठंडी बेसुध सी
झूठ झूम रहा हैं, भीड़ हैं गर्मी है
अपना सा हैं अपना ही हैं
13 जनवरी 2018
No comments:
Post a Comment