Tuesday, September 18, 2018

नोटबन्दी: एक दृड़ राजनीतिक सोच के परिचायक

राष्ट्र शायद व्यापक बदलाव के लिए अपना मन बना चुका था। 

जब भारतीय जनमानस ने 16 मई 2014 में अपना मत व्यक्त किया था, तो उसने बड़े साफ़ शब्दो मैं अपना आदेश सुना दिया था।

जनमानस ने स्प्ष्ट कर दिया था की उसके सपनो का भारत क्या हैं।

वह चाहता था की उसका भारत "शशक्त हो, सबल हो, और समानता के धरातल पर खड़ा हो".
जरूरत थे जनमानस की इस आकांछा को समझने की उसको अमल में लाने की।

एक दृड़ राजनीतिक सोच और दूरदर्शिता दर्शाने वाले व्यक्ति की। उस व्यक्ति की जो बिना अपना नफा नुक्सान सोचे, राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे।

देश के प्रधान सेवक ने, जनमानस की नब्ज को पहचाना और उसे एक सोच का जामा पहनाया।

कुछ ऐसे कदम उठाये जो उस सोच को कार्यान्वित करने के लिए प्राथमिक उपाय थे।

देश को भ्रस्टाचार के कीचड़ से निकलने के लिए यह एक सार्थक कदम हैं।

देशभर में 9 नवंबर को उठाय गए कदम को व्यापक समर्थन मिल रहा हूं।

यह बदलाव आर्थिक, सामाजिक, सामरिक और सुचिता की दृष्टि से एक बहुत बड़ा कदम हैं।
कुछ असुविधा होना तो स्वाभिक प्रतिक्रिया हैं।

समय के साथ यह असुविधा भी खत्म हो जायेगी। जो काले धन के संपर्क में काले नहीं हैं, वह आज गर्व महसूस कर रहे हैं।

जो परेशान हैं और आगे भी परेशान रहेंगे वह वैसे भी हाशिये पर ही खड़े थे।

हम देशवासियो को यह अवसर मिला हैं की हम इस काले धन के साम्राज्य के विरूद्ध खड़े होकर, इस सुचिता के महायज्ञ मैं अपनी पूर्णाहुति दे सकते हैं।

थोड़ी असुविधा के बाद अगर हमें अपने सपनो का राष्ट्र मिल सकता हैं तो असुविधा को स्वीकार करने का सामर्थ हम सबको ईश्वर ने दिया हैं।

आइये हम सब इस महायज्ञ मैं सम्मलित हो और इसे प्रभावी बनाये।

जय हिंद।



9 नवंबर 2016

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