टूटी तस्वीर
मैं कमरे मैं बैठा टूटी तस्वीर के शीशों को जोड़ रहा था
की ना जाने कहा से एक कांच का टुकड़ा नश्तर बनके चुभ गया
जीवन पल भर को दर्द के इर्द गिर्द सिमट के रह गया
कुछ याद ना रहा खून बहता गया दर्द होता गया
यह दर्द का एहसास शायद जरूरी था जिन्दगी मैं
वो तस्वीर का शीशा शायद हवा के तेज झोंके से गिरके टूटा था
तस्वीर भी शायद मेरी ही थी जो धुल की एक मैली सी मटमैलीपरत से धुंदली दिखाई दे रही थी
तस्वीर का कागज भी कुछ पीला सा बदरंग हो गया था
और फ्रेम की लकड़ी का गलना भी शुरू हो गया था
मुझे ठीक से याद नहीं वो कब की छवि थी
शायद मेरे गुजरे दोर की थी,
आजकी तस्वीर उस पीले कागज़ पर उकेरी लकीरों से जुदा थी
पता नहीं वोह भोली सी मासूमियत कहा धुल मैं मिल गयी हैंआजकी तस्वीर मैं
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