Tuesday, September 18, 2018

बड़ा क्रोधित था जनमन

बड़े आक्रोष मैं था जनतंत्र ।

बड़ा क्रोधित था जनमन ।।



क्रोध को व्यक्त किया ।
किया वही कार्य जो रोज किया ।।



निकला घर से गंतव्य को ।
कोई तो समय से पहले ही निकल गया ।।



करा हर वह काम  ।
जो वह रोज नहीं भी करता था ।।



क्रोधित मन था इसलिए ।
हर कार्य कुछ ज्यादा किया ।।



बंद कर दिया उसने प्रलाप अनर्गल धूर्त का ।
बंद कर दिया विलाप घड़ियाली विरोध् का ।।



मिला यज्ञ मैं आहुति देने का कार्य हैं ।
संकल्पशील हैं जनमन सम्पूर्ण करने इस अध्याय को ।।


धनलोलुपता की पराकास्ठा को छु रहे ।

कुत्सित, कुंठित, मन कुछ ।।



सब देख रहा टकटकी बंधे ।
सड़क पे खड़ा फ़कीर भी ।।



नाम पे मेरे जो चिल्लाहट की ध्वनि कर रहे ।
मेरे मौन को पढ़ते तो ।
दुस्साहस नहीं करते ।।


हम भीड़ हैं हमको पता हैं कहा जमना हैं ।

हमारे धैर्य को परखने की कसौटी मत कस ।।



निर्णायक निर्णय हैं हमारा ।



समय आने पे मन छाप देंगे ललाट पे।


राह सुगम नहीं हैं जिसका संकल्प मैंने भरा हैं।


पर भग्नवशेषो से नवीन निर्माण अब प्रतिज्ञा हैं।।



26 नवंबर 2016

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