Tuesday, September 18, 2018

जो कहना हैं

जो कहना हैं ।
बेझिझक, बेलौस कह दो ।।

इन इशारों की जुबा ।
अब समझना मुश्किल ।।

क्यों बंदिशों की जंजीरों में ।
सिसकती आरजू तेरी ।।

हवाओ में गेसुओं सी ।
अपने उड़ने में लगा रखी पाबंदी कैसे ।।

ज़माने भर का तूने सोचा है अबतक ।
अब तक बस वक्त कटता रहा हैं ।।

बचें चंद लम्हों को बचा तू ख्वाब सच कर ले ।
थोड़ी जिंदगी उनको थोड़ी मुझे देदे ।।

तेरी 'ना' तो कल भी थी ।
और अब भी हैं ।।

कभी साथ मेरे चलने का ।
हौसला कर ले ।।

बेफ़िक्र, बेपरवाह ।
देख मुझें, ।।

मेरी ख्वाहिश में कमी तो ।
अभी भी नहीं है ।।

तू नजरो की जुबां में अब ज्यादा बात मत कर ।
तेरा जान के भी अनजान हो जाना ।।
इतना मासूम भी नही है ।।।




13 फ़रवरी 2018

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