अपने छोटे से जीवन में
कई आंधिया देखी हैं
आंधियो के बाद रेत
फैलती देखी हैं
बदलावों के पड़ाव
आंधियो से नही आते
बस छड़ भर मैं सब बदलने
वाले लोग नही देखे
जब अकस्मात् से
कई भंवर बन जाते हैं
चक्रव्यूह के चक्र
धरा पे रच जाते हैं
अर्जुन या अभिमन्यु क्या
बनना हैं बोलो
अभिमन्यु बनकर तो
बस तुमको वीरगति होना हैं
लक्ष्य अगर तेरा
चक्रव्यूह का मर्दन हैं
कोई उपाय नही केवल
तुझको अर्जुन होना हैं
कई आंधिया देखी हैं
आंधियो के बाद रेत
फैलती देखी हैं
बदलावों के पड़ाव
आंधियो से नही आते
बस छड़ भर मैं सब बदलने
वाले लोग नही देखे
जब अकस्मात् से
कई भंवर बन जाते हैं
चक्रव्यूह के चक्र
धरा पे रच जाते हैं
अर्जुन या अभिमन्यु क्या
बनना हैं बोलो
अभिमन्यु बनकर तो
बस तुमको वीरगति होना हैं
लक्ष्य अगर तेरा
चक्रव्यूह का मर्दन हैं
कोई उपाय नही केवल
तुझको अर्जुन होना हैं
इस कुरुक्षेत्र में
युद्ध ही अंतिम सच हैं
अस्तित्व की रक्षा में
धूलधूसरित होना है
प्रश्न गंभीर मुँह बाये
खड़े होंगे
हर प्रश्न पर प्रतिक्रिया देने से
नये प्रश्न अंकुरित होंगे
संचय और भ्रम
इस पथ पर
साथ के पथिक होंगे
किसको कंधो पे लेकर
तुम लक्ष्य प्राप्त करोगे
युद्ध ही अंतिम सच हैं
अस्तित्व की रक्षा में
धूलधूसरित होना है
प्रश्न गंभीर मुँह बाये
खड़े होंगे
हर प्रश्न पर प्रतिक्रिया देने से
नये प्रश्न अंकुरित होंगे
संचय और भ्रम
इस पथ पर
साथ के पथिक होंगे
किसको कंधो पे लेकर
तुम लक्ष्य प्राप्त करोगे
किंतु परंतु की अठखेलियाँ
मन विचलित कर देती
लक्षभेदने की उत्सुकता
एकाग्रता भंग कर देती
त्वरित समाधान किसी विषय का
ऐसे ही नही हो जाता
समयबद्ध व्यवस्था मैं
एकाकी कुंठित हो जाता
मन विचलित कर देती
लक्षभेदने की उत्सुकता
एकाग्रता भंग कर देती
त्वरित समाधान किसी विषय का
ऐसे ही नही हो जाता
समयबद्ध व्यवस्था मैं
एकाकी कुंठित हो जाता
शक्तिक्षरण न हो
ये विचार सर्वविदित हो
अपने अपने खंडित
स्वप्नों पर पुनःविचार तो हो
खंडित हृदय किस बात पर
रुष्ट कोपभवन बैठा
आगुन्तक ऐसे न चुने
लाक्षागृह बन जाये
पांडव तो बच निकले
स्वयं भस्म न हो जाये
ये विचार सर्वविदित हो
अपने अपने खंडित
स्वप्नों पर पुनःविचार तो हो
खंडित हृदय किस बात पर
रुष्ट कोपभवन बैठा
आगुन्तक ऐसे न चुने
लाक्षागृह बन जाये
पांडव तो बच निकले
स्वयं भस्म न हो जाये
शक्ति श्रृंखला अनवरत रहे
यह प्रयास श्रेष्ठ हो
पौधा अभी नवीन हैं
धरा पर पकड़ बनाएगा
संचित निष्ठा से होता रहा
वटवृक्ष बनता जाएगा
वंशों का गठन
अकस्मात घटना नही होता
इतिहास के पृष्ठों में
उत्कीर्ण हर कोई नही होता
सतत साधना गंभीर प्रयास
आधारशिला होंगे
रामराज्य का दिव्यस्वप्न
निश्चित पूर्ण होंगे
यह प्रयास श्रेष्ठ हो
पौधा अभी नवीन हैं
धरा पर पकड़ बनाएगा
संचित निष्ठा से होता रहा
वटवृक्ष बनता जाएगा
वंशों का गठन
अकस्मात घटना नही होता
इतिहास के पृष्ठों में
उत्कीर्ण हर कोई नही होता
सतत साधना गंभीर प्रयास
आधारशिला होंगे
रामराज्य का दिव्यस्वप्न
निश्चित पूर्ण होंगे
15 जून 2018
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