ए मेरे कमबख्त दुश्मन
नाम को क्यों अपने नापाक करते हो
दम नहीं आँखे मिलाने की
तो हम पर छुप के वार करते हो
तेरा इतिहास हैं कितना
हमें खूब मालूम हैं
चंद पन्नो मैं सिमटा तेरा
वजूद मालूम हैं
किया हमने चंद बार
तेरे जुर्म को नजरअंदाज
की दोस्ती की तुझसे
नाकाम कोशिशे बार बार
मेरे मुल्क के कुछ जाहिलो ने
बार बार तुझे माफ़ किया हैं
सपोलों को दूध दे कर
बड़ा साँप किया हैं
बहुत दर्द अब सूइयों की चुभन
का होने लगा हैं
बार बार छोटा घाव
हरा हरा होने लगा हैं
अब यह कही नासूर न बन जाये
तेरे शौक मैं, यूं मैं डरता हूँ
दर्द कुछ ज्यादा ही होने लगा हैं
एकतरफा आशिक़ी मैं
दवा मेरे दर्द की अब
एक ही समझ आती हैं
निशान तेरा जमीन पर पड़ा
बड़ा अजीब सा नज़र आता हैं
मिटा देते हैं तेरे वज़ूद को क्यों ना
अब नौटंकी बहुत हुई
रास्ता भी तो तूने
कोई आसान सा नहीं छोड़ा नहीं हैं
सुकून इसी मैं हैं की
तेरी मौत आये
तेरे होने की आहट भी
अब बर्दाश से बाहर हैं
चंद पन्नो मैं सिमटे तेरे इतिहास में
एक आधा पन्ना ही जुड़ना और हैं
तेरे इतिहास को वैसे भी
पढ़ना किसका शौक है
पर एक यकीन तुझे दिल दूं ए कम्बख्त
तेरे नाम को रोने वाले तेरी जमीं पे कम हैं
इस तरफ की जमी मैं तेरे आशिक
भी बहुत हैं
यही रोएंगे यकीन मान
तेरे जनाजे मैं
तेरे यहाँ के तो मिल जायेंगे
क़ब्र की दीवारों में
20 सितंबर 2016
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