Tuesday, September 18, 2018

अर्बन नक्सल की घरबंदी

घर पे ही नजरबंदी
बहुत खूब कोर्ट की तुकबंदी
मजेदारी और बढ़ी
जब सरकारी वकील साब
मुँह में दही जमा कर
शून्य ताकते खड़े राहिल
जरा छोटी सी चोरी करलो
या हल्की सी डकैती
हिम्मत हो तो करके देखो
गुर्दे चाहिए सख्त
थोड़ी सी भी इधर उधर पर
तिहाड़ में डाले जाते
देश तोड़ने की मंशा में
बस घर पर नजरबंदी करवाते
जज साब भी बड़े जज्बे में
कुछ कुछ शब्द पिरोते
डिसेंट, सेफ्टी वॉल्व, प्रेशर कुकर
करके कुछ कुछ ज्ञान परोसते
जजवाणी सुनकर कई
फिस्सडी चैनलों जागे
यौवन का जैसे घड़ा फूटा हो
ऐसे दीदे फाड़े
इन सब हालातों में
कई आत्माएं हैं बड़ी दुखी
कुछ को भैया सच बोलूं तो
इमरजेंसी की आस जगी
तब कैसे संपादक को झुकने बोला
वो रेंगते हुये से आये
फन के फन को भूलकर
फैन बन गये सारे
आज की इमरजेंसी
वाकई बड़ी हसीन
भर भर बाल्टी गालियों की
हर घंटेे दो फेंक
कुछ भी लेकर तोड़ मोड़कर
मोदी तक ले जाओ
इन मित्रों को वो घास ना डाले
कैसे त्रस्त कराये
आपातकाल के मंत्र का
जाप निरंतर चालू
पर असलियत से दूर सजी
झूठी झांकी सारी
सेकुलरिज्म के मॉल में
लगी इंटेलेकटुअल की सैल
फाल्स हुड के हैम्पर पर
पोस्ट ट्रुथ हैं फ्री
बुड़बक बड़े बकबकी
बकलोली करते जाये
थोड़ी देर मैं कविराय का
ऊपरी माला जोर जोर भन्नाए
कलम नही की बोराये कवि
देदे जरा विश्राम
कीबोर्ड पे करते उंगली
शब्द क्षरंखलित होते जाए
अब खड़ी उंगली भी
कर रही इशारे कई
कल परसों भी चलनी हैं
जल्दी कर दो ब्रेक




30 अगस्त 2018

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