Tuesday, September 18, 2018

लीनचिस्तान का मायाजाल

अब तो जुबानी दही जमा के बैठी हैं
आँख पथरा जाएंगी खबरें ज़िक्र इंतेजार में
खून के रंग में तब्दीली हो गई हैं
बात खून की करने वालो का ख़ून भी ठंडा हो चला हैं
खबरों और बातों में
गले रेतने का जिक्र कब होता हैं
जब मरने वाला केसरी नही होता हैं
केसरी को ख़ून का रंग ही समझते हैं
इसीलिये पानी सा बहा जमी हरी करते हैं
प्रधान मुख से कुछ बोल तो निकले
संवेदना नही तो निंदा के शब्द ही फूटे
कर्ण आतुर हैं आहट क्यो नही
मन आहत तिरिस्कार क्यों हैं




20 अगस्त 2018

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