यह बड़ा खेदपूर्ण विषय हैं की वर्तमान वातावरण मैं विषय विशेष पर चर्चा करना शास्त्ररत करना इतना आसान नहीं रह गया हैं।
डिबेट और डिस्कशन मैं विषय की गंभीरता को ताक पर रखते हुए सिर्फ हार या जीत को प्रासंगिकता मिल रही हैं।
यह कोई किसी राजनेतिक दल से सम्बंधित व्यक्तियो या कुछ संवेदनशील विषयो तक ही सीमित नहीं हैं अपितु सर्वज्ञ व्याप्त हैं।
यह विशेष गुण मानवीय इतिहास मैं हर युग मैं रहा हैं भाषा विशेष के टिपड़ीकरो ने इसे intolerance की संज्ञा दी हैं।
10 नवंबर 2015
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