Tuesday, September 18, 2018

मेरे विचारो का विस्तार और सारांश

मेरे विचारो का विस्तार और सारांश
 
वंश के शेष अवशेषो के भग्नवशेषो मैं बदलने का समय शीघ्र अति शीघ्र आने वाला हैं।
 
एक महान व्यक्तित्व ने पराधीनता मैं स्वाधीनता के लक्ष को प्राप्त करने के लिए आजाद हिन्द की परिकल्पना की थी।
 
इतिहास के पृष्ठों पर सिर्फ वंश विशेष के प्रयासों को शब्दबद् किया गया हैं ।
 
समकालीन इतिहासविदों ने महान व्यक्तित्व के अवर्णीय कृतित्वो के महत्ता को अपने निजी विचारो के बोझ तले दबा दिया। अपनी साम्यवादी विचारो की छलनी से उन्होंने सुभाष बाबू के विचारो को कभी वृस्तत स्थान नहीं दिया।
 
पृष्ठ दर पृष्ठ वंश विशेष के महिमा मंडन और आयातित सोच को काला करने मैं खपा दिये गए।
 
कालान्तर मैं जब तब आम जनमानस से यह आवाज उठी की सुभाष बाबू से सम्बंधित सामग्री को सार्वजनिक किया जाये तो उसको अंतर्राष्ट्रीय संबंधो मैं वैमनस्य होगा कहकर शांत कर दिया गया।
 
वर्तमान तक यह स्थिति इसी भंवरजाल मैं फंसी रही। पक्षिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने एक साहसिक निर्णय लिया और बंगाल सरकार के अधिकार मैं जो दस्तावेज थे उनको सार्वजनिक कर दिया।
 
मोदी सरकार पर बंगाल नेत्री का ये कदम सरकार के अब तक के तर्कों पर भारी पड़ा और उसे पुनर्विचार के लिए विमश होना पड़ा।
 
मोदी सरकार ने अंततः यह घोषणा की। की नेताजी से सम्बंधित गोपनीय करार दिए गए दस्तावेजो को सार्वजनिक किया जायेगा।
 
अब जब यह दस्तावेज सार्वजनिक करने का वादा हो चूका हैं तो आशा हैं काफी कुछ बदल जायेगा।
शायद इतिहासविद् अपनी लिखी विचारो की शंखला को नई समझ के साथ लिखे । जो विचार न होकर सच के धरातल पर खड़े अकाट्य सत्य हो।
 
शायद नेताजी से जुड़ी किवदंतियों पर पूर्णविराम लग जाये।
 
शायद वंश विशेष के महिममण्डल की छठा धूमिल पड़ जाये या कहे छिन्नभिन्न हो जाये।
 
शायद देश के राजनेतिक वातावरण मैं कुछ नए समीकरण जन्म ले।
 
बहुत कुछ संभव हैं पर हर एक परिस्थिती, हर एक उत्तर उन दस्तावेजो के अंदर दर्ज हैं छुपा हैं। भविष्य के गर्भ मैं असीमित सम्भावनाये छुपी हुई हैं। संभावनाओ के द्वार खुलने शुरू हुए हैं।
 
समय का चक्र अपनी मंथर गति से चल रहा हैं और काफी कुछ बदल रहा हैं। इतिहास मैं वर्तमान दर्ज हो रहा हैं और भूतकाल मैं रचा गया कुछ कुछ इतिहास सत्य की कसौटी पर परखा जा रहा हैं।
 
अंतत वही रहे जो सत्य हो वही टीके जो सत्य है वही हो जो सत्य हो।
 
शायद कुछ मतिभ्रष्ट सत्य को ही पुनर्परिभाषित करने को आतुर हो जाये।
 
क्या पता !!!
 
 
14 अक्टूबर 2015

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