Monday, September 24, 2018

रंगमंच की परछाई

रंगमंच की परछाई
वर्षो से सुना करते थे की जीवन रंगमंच हैं |
अब जाके पता चला की यह कितना सत्य हैं ||

हम सब तो शायद कहानी के किरदार भर हैं |
लेखक की लेखनी के हम मोहताज भर हैं ||

क्या कभी हम आपने आपको जी पाएंगे ?
या हमेशा लेखक की बाट जोहते जायेंगे ||

क्यों हमें हमेशा एक किरदार बनना पड़ता हैं ?
ना चाहते हुए भी रंगमंच का भाग बनना पड़ता हैं ||

हमारी हस्ती शायद हस्ती नहीं हैं बस एक परछाई भर हैं |
शायद अभिशप्त हैं हम सब रोशनी के लिए ||

क्यों हम स्वछंद नहीं हैं उन परिंदों की तरह ?
जो बेखौफ उचाई नापते हैं आसमान की ||

हमें हमारा किरदार कब छोड़ेगा |
कब हमारा अपना आसमान होगा ||

कब हम किसी लेखनी के मोहताज नहीं होंगे |
कब हम इस रंगमंच पर किरदार नहीं होंगे ||
कब हम इस रंगमंच पर किरदार नहीं होंगे ||

1 comment:

Unknown said...

Its good but you can do better