Tuesday, September 18, 2018

दयाशंकर, स्वाति, मायावती और बारह साल की बच्ची

यह लेख बड़े वैचारिक उन्माद के बाद लिख रहा हूँ।

बहुत सोचा की लिखू या न लिखू।

दयाशंकर सिंह ने जो व्यक्तत्व दिया उसकी भर्तस्ना कठोर शब्दो मैं की गयी यह सर्वविदित हैं, और हो भी क्यों न, एक व्यक्ति विशेष के प्रति की गयी अनर्गल बात, जितने कठोर शब्दो मैं उसकी निंदा की जाये कम हैं।
 
विषय वही ख़तम हो जाता जब बीजेपी ने बिना समय गवाएं इस पर कठोरता से कार्यवाही की , नेता सदन ने मायावती जी से क्षमा मांगी।

पर शायद चुनावो के द्वार पर खड़ी स्वयं घोषित देवी बहिन मायावती जी को यह सब कम लगा और उन्होंने दयाशंकर सिंह के परिवार की महिला सदस्यो को इस प्रकरण में घसीट लिया।
 
बारह साल की बच्ची को, उन्मादी भीड़ के सामने प्रस्तुत करने की मांग उठने लगी, सोच के रूह कांप जाती हैं की अगर वह सचमुच वहा होती तो भीड़ उसका क्या हश्र करती।
 
देवी तुल्य बहिन मायावती जी के सम्मान पर ठेस पहुची पर प्रश्न यह हैं की उनका सम्मान, सम्मान हैं और दयाशंकर सिंह की पत्नी, बच्ची, माँ और बहिन का सम्मान कोई सम्मान नहीं हैं।
 
एक देवी से यह उम्मीद रखना तो लाजमी हैं की वह एक बार कह देती की भर्तस्ना उसकी हो जिसने कुकृत्य किया हैं, उसकी न हो जो इस प्रसंग के मुख्य पात्र नहीं हैं। पर स्व-घोषित देवी और असली देवी मैं अन्तर तो होगा ही।
 
स्वाति सिंह उस बच्ची की माँ हैं, उनका रोद्र रूप यही दर्शाता हैं की माँ वक्त पर सिंह को भी परास्त करने की शक्ति रखती हैं।
 
यह प्रसंग कई प्रश्न खड़े करता हैं, लगता ऐसा हैं की सम्मान भी आरक्षित हैं, अगर आप दलित वर्ग से हैं, एक महिला हैं, और एक राष्ट्रीय दल की सर्वेसर्वा हैं तो आपकी शक्तियां किसी भी दुसरे वर्ग से आने वाले और वह महिला ही क्यों न हो उससे कही ज्यादा व्यापक और शक्तिशाली हैं।
 
काश एक बार मायावती जी ने आपने देवी तुल्य होने का एहसास कराया होता और अपनी ही आंदोलित और उन्मादी भीड़ को जो भीड़ नहीं आपके समर्थक हैं उनको टोका होता।
 
पर आप यह कर नहीं पाई और बहुत बड़े वर्ग की देवी बनने से चूक गयी।
 
 
 
24 जुलाई 2016

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