Monday, September 24, 2018

रंगमंच की परछाई

रंगमंच की परछाई
वर्षो से सुना करते थे की जीवन रंगमंच हैं |
अब जाके पता चला की यह कितना सत्य हैं ||

हम सब तो शायद कहानी के किरदार भर हैं |
लेखक की लेखनी के हम मोहताज भर हैं ||

क्या कभी हम आपने आपको जी पाएंगे ?
या हमेशा लेखक की बाट जोहते जायेंगे ||

क्यों हमें हमेशा एक किरदार बनना पड़ता हैं ?
ना चाहते हुए भी रंगमंच का भाग बनना पड़ता हैं ||

हमारी हस्ती शायद हस्ती नहीं हैं बस एक परछाई भर हैं |
शायद अभिशप्त हैं हम सब रोशनी के लिए ||

क्यों हम स्वछंद नहीं हैं उन परिंदों की तरह ?
जो बेखौफ उचाई नापते हैं आसमान की ||

हमें हमारा किरदार कब छोड़ेगा |
कब हमारा अपना आसमान होगा ||

कब हम किसी लेखनी के मोहताज नहीं होंगे |
कब हम इस रंगमंच पर किरदार नहीं होंगे ||
कब हम इस रंगमंच पर किरदार नहीं होंगे ||

बिन मौसम बरसात

बिन मौसम बरसात

क्यों अक्सर बिन मौसम बरसात मैं , 

लड़का लडकी भीग जातेहैं

भीगकर पुरानी झोपडी मैं शरण पाते हैं

झोपडी मैं अक्सर माचिस के साथ लकड़ियाँ होती हैं , 

और एककनस्तर मैं किरासीन भी होती हैं

अक्सर एक कम्बल भी मिल जाता हैं, 

और बिजली चमकने सेयुगल जोड़ा पास आ जाता हैं

फिर मधिम रोशनी मैं संगीत का जनम होता हैं, 

और कैमरालालटेन को कवर किये रहता हैं

रंगीन रात के बाद सुबह अक्सर हसीन होती हैं ||

अक्सर मेले मैं खोये हुए दो भाई,

इकीस साल बाद मिलते हैं, 

और सगे बच्चे अक्सर अमर, अकबर, अन्थोनी बनते हैं

नायक का बाप अक्सर अमीर होता हैं, 

तो नायिका को झोपड़ानसीब होता हैं

फिर भी अक्सर नायिका दीजानर ड्रेस पहेनती हैं, 

और नायककी माँ निरूपा राय होती हैं

अक्सर जुएँ घर मैं पचीस पैसे करोड़ बन जाते हैं , 

करोडपति फैक्ट्री की आग मैं रोडपति बन जाते हैं

ओपरशन थेटर मैं डाक्टर अक्सर आइ ऍम सारी बोलता हैं, 

और हीरो फुर्ती से उठ कर खड़ा हो जाता हैं

चार आदमी एक गोली से अक्सर मारे जाते हैं , 

और घूसे से लोहे के मोटे दरवाजे अक्सर टेड़े हो जाते हैं

रिवाल्वर मैं गोलियां अनगिनत होती हैं , 

कीलइमअक्स मैं जीपोंकी जमपईग होती हैं

वो कुम्भ के मेले मैं बिछुड़े हुए भाई 

कीलइमअक्स मैं मिलते हैं

मोना के संग माइकल अक्सर होते हैं

जीवन चक्र 

जीवन चक्र 

सूर्य जब उदय हुआ 

जीवन सक्रीय हो उठा 

सूर्य जब अस्त हुआ 

जीवन निष्क्रिय हो गया 

उदय अस्त के इस क्रम में 

जीवन का सब सार छुपा 

पाप पुर्ण की व्यथा छुपी 

धर्म -अधर्म का मार्ग छुपा

समझो तो यही स्वर्ग हैं 

समझो तो यही नर्क हैं 

कर्मों की कहानी मैं 

जीवन का सारांश छुपा 

कथा कर्म की इतनी हैं 

सुख दुख सी यह अपनी हैं 

अपने कर्मों की करनी 

इस जीवन ही मैं भरनी हैं 

सूखता दरख़्त 

सूखता दरख़्त 

जब भी उस सूखते दरख़्त को देखता हूँ , गुजरा हुआ कल यादआता हैं 

जिसकी वक़्त गुजरने के साथ, जमी मैं और धसती जा रही हैंजड़े 

जिन्दगीयों के खुशहाल वक़्त भी देखे थे उसने, जब हर शाख पेपरिंदों के घरोंदे थे

तब ना जाने कितने अंधड़ आये और साथ मैं बेहिस्साबबिजलियाँ लाये 

सैलानी इतने रुके की जिनकी गिनती  नहीं 

उस वक़्त आशिकों ने भी जरे जरे पर अपनी आशिकी केअफसाने लिख दिए थे
तबके कई शायरो की रोटी का बंदोबस्त हो गया था 

कई मेलों के रससो को उसने थमा था, कई नुमाइशओ मैं अपनावजूद दिखाया था 

फिर वक़्त के साथ फिजा भी बदलने लगी, घरोंदे गिरे, पतियागिरी और तहनिया भी गिर गयी 

दरख़्त जितना जमी मैं जमा था उतना ही तनकर ऊपर खड़ा था

पर इतनी बड़ी हस्ती भी उसे बचा ना पाई, एक हल्की हवा कीलहर उसकी मौत लेके आयी 

आज उसका कुछ हिस्सा खिड़की बना हैं, और बाकी पड़ा वहीजमी बन रहा हैं

टूटी तस्वीर

टूटी तस्वीर

मैं कमरे मैं बैठा टूटी तस्वीर के शीशों को जोड़ रहा था 

की ना जाने कहा से एक कांच का टुकड़ा नश्तर बनके चुभ गया

जीवन पल भर को दर्द के इर्द गिर्द सिमट के रह गया
कुछ याद ना रहा खून बहता गया दर्द होता गया
यह दर्द का एहसास शायद जरूरी था जिन्दगी मैं

वो तस्वीर का शीशा शायद हवा के तेज झोंके से गिरके टूटा था
तस्वीर भी शायद मेरी ही थी जो धुल की एक मैली सी मटमैलीपरत से धुंदली दिखाई दे रही थी 

तस्वीर का कागज भी कुछ पीला सा बदरंग हो गया था

और फ्रेम की लकड़ी का गलना भी शुरू हो गया था

मुझे ठीक से याद नहीं वो कब की छवि थी

शायद मेरे गुजरे दोर की थी, 

आजकी तस्वीर उस पीले कागज़ पर उकेरी लकीरों से जुदा थी

पता नहीं वोह भोली सी मासूमियत कहा धुल मैं मिल गयी हैंआजकी तस्वीर मैं

Tuesday, September 18, 2018

Rivers of past

50000 BCE:

“Yamini, Yamini what are you doing come back she is in bad mood today”.

Words of maa forced yamini to retract her advancing gallops down hillocks, she was huffing and puffing but furiously she was leaping upwards swiftly, from corner of her eyes she could see the rage galloping furiously.

Dhruv was visible now, but was almost alone, faint ones were not visible, clouds were playfully around him, but not for long, he was engulfed now, heavy clouds were swaying dangerously.

‘They can burst any time - should I go inside ?’. Yamini was restless, she had twisted and turned several times, the visuals of fury were deeply ingrained in her thoughts. 

Every now and then her steady thoughs were drifting away. She was prisoner of her witnessed mighty fury. 

She turned more and could still see white raging anger, “this is not normal, I have never seen her so angry”.

She is raging down everything in sight, how mightily she embraced that wide “I need to question her” she must be nearby, “I need to rush”.

Barely managing to stay still, heavy downpour was shifting earth beneath her.
Gushing waters was gathering momentum with every descent.

Should I ask now, the vagaries of nature has emboldened Yamini, she was forcefully keeping herself stable, with every lightning strike, her slender yet curved frame was gleaming, her divine statuette was perfect for sculptor to carve out another masterpiece.

There was nothing much to hold volley of piercing and heavy drops. Pores have oozed out, heavy bunch of pitch dark hairs have coiled serpently.

Yamini striked her spear hard in loose earth, on firm yet shaky tripod she leaned forward.

Lightning strikes again, her feminine self revealed - stunning is lesser elucidation.

“O Saraswati why you are so angry, why you are frothing so hard, O mighty you have already swallowed banks on which my forefathers wrote hymns in your reverence, O devi I bow before you to forgive us for our deeds. O beauty O maa forgive us”
“|| ambitame nadeetame devitame sarasvati ||
|| aprashastaa iva smasi prashastimamba naskrudhi ||  
`O Sarasvati, you the best of mothers, the best of rivers, the best of gods ! Although we are of no repute, mother, grant us distinction’ ”
Droplets have started thinning down, sky has just opened up, shy rays of saffron hues have started gleaming faintly.

Devoid of darkness, Dhruv was searching for Yamini, bank's of Saraswati has expanded, the land was not visible till horizon.

Saraswati has turned east. 

Far away near sandbanks, dunes were eclectic, air from north has was carrying fragrance of Saraswati.

Quiet tears roll down dhruv’s tired eyes, Yamini’s’ spear was floating aimlessly amidst silent waters of Saraswati.


Chapter 1: Legends of Lost River.


Written on: 14th September 2018

Character of Nation

As old saying in English goes

Wealth is gone nothing is gone

Health gone something is gone

Character is gone everything is gone.

The simple interpretation wrt to india is.

Marauder's, plunderer, looters, barbaric invasion looted the wealth of country but country is still existing and generating wealth.

Invaders start settling in and started disturbing, believes, custum, traditions, religious practices - something gone, great damage but still repairable.

But when invaders fully settled in and started changing character of country, destroying the education system of india. They striked hard at roots of idea of india, sanatana dharma - they destroyed self confidence and self respect.

This damage to character of sanatana dharma is the biggest damage.


11th September 2018

आधी अधूरी

मद्धिम से स्याह होती निशा निश्चित ही मादक हवाओं के साथ और गहरी और काली होती जायेगी। 
दिनभर मानसूनी बादलों के साथ अठखेलियाँ करती हुई हवा रात होते होते आसक्त अतृप्त बस भटकी हैं। 
अब पलों का कोलाहल शांत हैं। हवा उन्मुक्त, आच्छादित, स्वछंद स्वयं कोलाहित हैं।

स्पर्श को व्याकुल अधर, कुछ सकुचाये हुए
अज्ञात अभिव्यक्ति की आस में तन पसराये पड़ी हवा उठी यमुना किनारे।
सहसा झीनी चंद्रिमा आवरण से मुक्त हो बिखर गई शहर के निशाचरी रोशनी में।
कंक्रीट के बियाबानो में उलझी कसमसा रही हर तरफ रोशनी में नहा रही

भारत बंद - 10 सेप्टेंबर 2018

भारतबन्दी पेड़ पर
बैठे तोंद फुलाये
नीचे से दन दण्ड पड़े
गिरे पड़े छितराये
पप्पू मंत्र पढ़े जो सज्जन
मति खोये दुख पाये
आलू से सोना निकले
सब एम आर आई कनेक्ट हो जाये

अर्बन नक्सल की घरबंदी

घर पे ही नजरबंदी
बहुत खूब कोर्ट की तुकबंदी
मजेदारी और बढ़ी
जब सरकारी वकील साब
मुँह में दही जमा कर
शून्य ताकते खड़े राहिल
जरा छोटी सी चोरी करलो
या हल्की सी डकैती
हिम्मत हो तो करके देखो
गुर्दे चाहिए सख्त
थोड़ी सी भी इधर उधर पर
तिहाड़ में डाले जाते
देश तोड़ने की मंशा में
बस घर पर नजरबंदी करवाते
जज साब भी बड़े जज्बे में
कुछ कुछ शब्द पिरोते
डिसेंट, सेफ्टी वॉल्व, प्रेशर कुकर
करके कुछ कुछ ज्ञान परोसते
जजवाणी सुनकर कई
फिस्सडी चैनलों जागे
यौवन का जैसे घड़ा फूटा हो
ऐसे दीदे फाड़े
इन सब हालातों में
कई आत्माएं हैं बड़ी दुखी
कुछ को भैया सच बोलूं तो
इमरजेंसी की आस जगी
तब कैसे संपादक को झुकने बोला
वो रेंगते हुये से आये
फन के फन को भूलकर
फैन बन गये सारे
आज की इमरजेंसी
वाकई बड़ी हसीन
भर भर बाल्टी गालियों की
हर घंटेे दो फेंक
कुछ भी लेकर तोड़ मोड़कर
मोदी तक ले जाओ
इन मित्रों को वो घास ना डाले
कैसे त्रस्त कराये
आपातकाल के मंत्र का
जाप निरंतर चालू
पर असलियत से दूर सजी
झूठी झांकी सारी
सेकुलरिज्म के मॉल में
लगी इंटेलेकटुअल की सैल
फाल्स हुड के हैम्पर पर
पोस्ट ट्रुथ हैं फ्री
बुड़बक बड़े बकबकी
बकलोली करते जाये
थोड़ी देर मैं कविराय का
ऊपरी माला जोर जोर भन्नाए
कलम नही की बोराये कवि
देदे जरा विश्राम
कीबोर्ड पे करते उंगली
शब्द क्षरंखलित होते जाए
अब खड़ी उंगली भी
कर रही इशारे कई
कल परसों भी चलनी हैं
जल्दी कर दो ब्रेक




30 अगस्त 2018

सवर्ण समाज का भारत बंद


विरोध करके गुस्सा दिखा कर एक कार्य तो भलीभांति सम्पन्न हुआ। नकारात्मक ऊर्जा को निकालने का मार्ग मिल गया। मुद्दा था तो अनुसूचित जाति जनजाति से संबंधित कानून का कानून के दुरुपयोग का, पर विरोध पथ पर अग्रसित उन्माद व्यक्ति विशेष के विरोघ से राष्ट्र विरोध में बदल गया।

पिछले साढ़े चार साल की यह बड़ी उपलब्धि है की विरोध कुछ भी हो, किसी भी चीज का हो, वो शीघ्रता से मोदी विरोध के पथ से राष्ट्र विरोध में परिवर्तित हो जाता हैं।

यह विचार करने योग्य विषय हैं भारत विरोध करके क्या प्राप्त हुआ और क्या खाख हुआ।

आज का भारत बंद तो भविष्य में आने वाले बंदो की झलक मात्र हैं। 2019 के चुनाव आते आते तो पराकाष्ठा की सीमाएं भी हदों की अनन्त लकीरों को लांघ जाएंगी।

उन्माद की सीमाओं का आंकलन उन्माद के शांत होने के बाद ही संभव हो सकता हैं।

पर एक प्रश्न बिजली की तरह कौंधता हैं और विवेक को चुनोती देता हैं, यह यकायक वातावरण बदल रहा हैं, यह फिर यह सब लयबद्ध हैं, सुरों में गढ़ा हुआ हैं।

एक के बाद एक होती घटनाएं जो बस विरोध और विषाद से भरी हैं, किसी मंझे निर्देशन की तरफ केंद्रित करती हैं।

अगर थोड़ा ध्यान एकाग्रचित्त करके परिस्थितियों का विश्लेषण करें, मुद्दों और उस पर होने वाले विरोघ की विवेचना करे तो यह संशय होता हैं - क्या यह सब
कैम्ब्रिज एनालिटिक्स की खोजपरक रिपोर्ट के कार्य बिंदु है। जिसके केंद्र में विभाजन, विभाजित, विच्छेद, विरोध के कार्यवाही योग्य पथ प्रदर्शक हैं।

हर सामाजिक त्रुटि को कुरेदो, उसमे जहर भरो आग लगाओ और दूर खड़े होकर दूसरों को दिखाओ - की देखो वो कैसे अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं तुम क्या कर रहे हो - धिक्कार ऐसी जवानी पर - खून नही हैं पानी हैं - आग इतनी भड़काओ की लोंगों के मन मस्तिष्क में बस ऋणात्मक ऊर्जा बढ़ती रहे।

विरोध को लोकतांत्रिक असहमति का माध्यम मान लिया जा रहा हैं, पर विरोघ किसका हैं, क्यों है, और उसकी सीमाएं क्या हैं इसका कोई जिक्र नहीं किया जाता हैं।


6 सितंबर 2018

शौरी साहब का दर्द

बन चकोर बीती उमरिया
चांद देखी हर दिन दुपहरिया
मन शंकित एक रोज भयो
चांद पे मोहे मन डसयो
दाग गड्ढे धुंधले से
पूरे पूरे साफ भये
चकोर प्रेम का बंधन टूटा
रो रो सारे रिश्ता फूटा
आंख साफ भई या
काई जमी
चांद छोड़ उल्कायें दिखी
अब मन पिंडों में उलझा
सुलझा मन भूत बन लटका




3 सितंबर 2018

इंटेलेकटुअल अनलिमिटेड

सेकुलरिज्म के मॉल में
लगी इंटेलेकटुअल की सैल
फाल्स हुड के हैम्पर पर
पोस्ट ट्रुथ हैं फ्री
बुड़बक बड़े बकबकी
चैटिंग करते जाये
थोड़ी देर मैं ऊपरी माला
जोर जोर भन्नाए



23 अगस्त 2018 

लीनचिस्तान का मायाजाल

अब तो जुबानी दही जमा के बैठी हैं
आँख पथरा जाएंगी खबरें ज़िक्र इंतेजार में
खून के रंग में तब्दीली हो गई हैं
बात खून की करने वालो का ख़ून भी ठंडा हो चला हैं
खबरों और बातों में
गले रेतने का जिक्र कब होता हैं
जब मरने वाला केसरी नही होता हैं
केसरी को ख़ून का रंग ही समझते हैं
इसीलिये पानी सा बहा जमी हरी करते हैं
प्रधान मुख से कुछ बोल तो निकले
संवेदना नही तो निंदा के शब्द ही फूटे
कर्ण आतुर हैं आहट क्यो नही
मन आहत तिरिस्कार क्यों हैं




20 अगस्त 2018

हिन्दू मेरा परिचय

हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास
मै यम की प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भूपर
पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन
मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मै आया तभि द्रवित होकर मै आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥


अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर उन्ही की लिखित कविता

अटल जी को श्रद्धांजलि

मन आज विचिलित हैं
शब्द खो रहे
विराट व्यक्तित्व को
कैसे पंक्तियों में समेट दे
ओजपूर्ण वाणी
सरस्वती विद्धमान
वो विहंगम दृश्य संसद का
जब अटल वाणी गूंजे
भारत को समर्पित
जमीन से जुड़ा
काल के ललाट पर
अमिट छाप छोड़े
अटल निर्णय की लकीरों
पर आगे अग्रसर हिन्दुस्तान
नतमस्तक तेरे सम्मुख मैं
शत शत नमन ओ सरस्वती पुत्र
एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व
जिनके कृतित्व की झलकियों
हर सच्चे हिंदुस्तानी के हृदय
में अंकित हैं, अमिट रहेंगी
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी
कवि शिरोमणि अटल बिहारी वाजपेयी
सरल हृदय हँसमुख चित्त अटल बिहारी वाजपेयी
भावभीनी श्रद्धांजलि
ऊं शांति




16 अगस्त 2018

युवराज का विदेश भ्रमण

कुछ समुंदर पार कर
युवराज इतराये
श्रोता सामने देख कर
बक बक करते जाये
नौकरी और आतंक में
सामंजस्य बैठाए
Isis से जुड़ने वालो को
बेरोजगार बतलाये
देश में जब नही बनी
आलू से सोने की चक्की
ठेला लेके कोला बेचो
बोल के नाम शिकंजी
बातों का बेड़ागर्क हुआ
तो लिपट के गले पड़ जाओ
सीट पे वापस पहुच कर
आँख को मस्त मचकाओ
पूछने वाला कोई नही
क्यों बेल पर हो भाई
कोशिश जबरन जारी रखो
कोई बोफोर्स मिल जाये
हर मुद्दा तो ऐसा मुद्दा
जैसे अभी हुआ हो
तुम्हरे राज्य में जैसे
सबको सुर्खाब के पंख लगा हो
गालो पे पड़ते गड्ढो के
दीवाने करते चर्चे
अमेठी की सड़कों के गड्ढे
सस्ते से भी सस्ता
मसखरी से प्रसिद्धि
का रास्ता चुना हैं अच्छा
वोटर भैया ध्यान यह रखना
मजाक बड़ा है महंगा
मजे मजे में तुमने जो
उल्टा बटन दबाया
अगले एक दो दशकों को
कूड़ा हो जाना हैं पक्का
हैं शिकवे बड़े यह
बात कही हैं सच्ची
पर बुद्धि का नाश करके
दुर्दिन क्यो हैं चुनना
ईंट ईंट जुड़ रही काई सिमट रही
जंग बड़ी गहरी घुसी
वक्त के साथ
मिट रही
पथ में बड़े अवरोध हैं
संयम से संतुलन साधना
स्वप्न यथार्त बनेंगे
मन में आत्मविश्वास बाँधना
अभी घट रही घटनाओं पर
तर्कपरक परख करो
त्रुटिहीन सबकुछ चले
यह ढकोसला न रहे
मसखरे की मसखरी का
हार्दिक आनंद उठाओ
मुफ्त में हो रहे मनोरंजन के
मजे लो हास्य पाओ




10 अगस्त 2018

ट्रॉल्लिंग से इतर

इन ख्वाहिशों में

यह जिंदगी न जला

वो उनकी कहानियों

से दिल न लगा

यह आशिकों के 

खेल हैं ग़ालिब

उनको रूठने को 

मौका न समझ

वो कल रूठे

आज साथ हैं

वो कल फिर 

रूठेंगे ये मान ले ज़ालिम



10 अगस्त 2018

कभी कश्मीर में पंडित भी थे

जब उन्नासी मैं

घाटी के पंडित क़त्ल हुऐ

तब आवाज उठाने वालों के

मुँह में ताले बड़े पड़े

रहना उनको भी था बस्ती में

पर अरमान मसल के रख दिये।

एक बार आपकी क़लम से

कुछ किस्से उनके भी आते

शहर में तब मुहब्बत के

चिनार बड़े मेहताब लगते


18 जुलाई 2018

कांग्रेस, इतिहास और परिहास

कांग्रेस खड़ी
लकीरों से घिरी
लकीरें गाढ़ी
खाई बनी
खाई में बड़ी
गाद भरी
सडांध दूर दूर तक
फैले और इतराये
हर दल में
थोड़ी कम
थोड़ी ज्यादा
कांग्रेसी बास समाये
पंक्ति के अंत
तक पहुचने की बात
लकीरों से भिड़ कर
दम तोड़ती जाये
सिमटता आधार
वर्गो में बटा
बचे हुऐ का
अनवरत बँटाघार
कभी जनेऊ की लकीर
कभी टोपियों का खेल
हर मौसम में बदलता
विचारधारा का वेग
भरा लोकतंत्र पर
प्रहार करने का दंभ
सुरम्य स्थानो से
लड़ने का भ्रम
इतिहास के पन्नों
मैं भी उत्कीर्ण कई रेखाएं
गहरी छाप छोड़कर
मिटती नही रोशनाई
कश्मीर से कन्याकुमारी
रक्तरंजित लकीरें
देती यह संदेश
बस अब बहुत हुआ
खेल खत्म करो
कांग्रेस को इतिहास में दफन करो




18 जुलाई 2018

दिल्ली वाले सोफा संत

सोफा संत करे द्वंद
गिरे धन्न
सोफा सन्न
फोम हो गया चिंगम
चिपक तन
नो मूवमेंट
तोंद तोड़ती
बटन बंध
चाटू चाटे चटपट
समोसे झट
बिल भिल्लड़
भरे इंद्रप्रस्थ
झाड़ू पड़ी
अनयुसेड खड़ी
जाले पड़े
भूत लगे
छितराई तिनके पड़े
वाई फाई एंटेना बने
लो परसाद ग्रहण कर लो
घर पे एंटरटेनमेंट रिसीव
कर लो




15 जुलाई 2018

केजरी ऑन सोफा प्रोटेस्ट


केजरी लेटा सोफा पर
पाव पूरे पसराये
ऎसी चले धपक धपक
दिल्ली आंसू बहाये
काम करे न काज करे
मंत्री मंडल वही पसरे
दिल्ली मैं जो काम पड़ा हैं
वोह अपनी किस्मत रोये
मोदी मोदी नाम जपत हैं
केजरी सुध बुध खोय
मति फिरी जो वोट दिया
अब झाड़ू पर हैं सोये
पांच साल विकराल बड़े
नौटंकी मैं खोये
हर सुबह दिल्ली सहमी
ट्विटर का मुँह ताके
कौन नहीं फुलझरिया लेके
केजरी पूरा दिन साधे
केजरी दरबार मैं
भूत भरे हैं भारी
एक एक कर निकल रहे
नौटँकी हैं चालू
फिर केजरी बैठा सोफे पर
वादे दिए लटकाये
जाको जितनो चाहिए
वाई फाई साथ मैं लाये
डाउनलोड करलो उनको
फोल्डर रख सजाओं
पूरे होते कुछ नहीं
जंक ही डिजिटल बना
केजरी दरबार मैं
भूत भरे हैं भारी
तर्कों पर कुतर्क छोड़कर
करते नौटँकी सारी
सुन साधो बिन मांगी
सीख दिए कबीरा
काम काज कछु कर ले मोड़ा
दिन बहुरेंगे थोडा
लटकी झाड़ू पेड़ से
सीक सीक छितराये
एक एक ले जाओ घर पे
वाई फाई चल जाये
झाड़ू वाला लेकर बैठा
तिनके उसके खोले
एक एक तिनका देकर
देखो क्या क्या बोले
मुझसे कपटी धूर्त कोई ना
में सबका मामा हूँ
झूठ बोलना मेरा पेशा
में झूठ की खाला हूँ
नई राजनीति का नारा
में पेड़ पर चढ़कर बोला
बच्चो की कसमो को मैंने
चना समझ कर तोड़ा
झूठ बोलने में नही हैं
मेरा ब्रह्मांड में जोड़
ठग्गू के लड्डू भी
मेरे सामने गोल
झूठो की बारिश मुझको
लगती बहुत हैं प्यारी
हर बार के झूठ से
बढ़ती चंदे की थाली
मेरे झूठ की चादर बिछी हैं
शामियाना तना हैं बुलंद
किलबिलाती मेरे अंदर
माफी मांगने की हूक
अब माफी का फ़र्रा लेके
में बैठा चोराहे
जिसको जितनी चाहिये
थोक में वो ले जाये
यह सारी नौटंकी मेरी
नई नोटंकी का आगाज़
आगे आगे देखिये
मेरी पेशकश खास
नया पैंतरा मैंने सीखा
बेच के अपनी साख
मुझसे बड़ा न कोई ढ़ोंगी
गांठ बाँधलो ये बात



17 जुलाई 2018

छोटा जीवन छोटी झांखी

अपने छोटे से जीवन में
कई आंधिया देखी हैं
आंधियो के बाद रेत
फैलती देखी हैं
बदलावों के पड़ाव
आंधियो से नही आते
बस छड़ भर मैं सब बदलने
वाले लोग नही देखे
जब अकस्मात् से
कई भंवर बन जाते हैं
चक्रव्यूह के चक्र
धरा पे रच जाते हैं
अर्जुन या अभिमन्यु क्या
बनना हैं बोलो
अभिमन्यु बनकर तो
बस तुमको वीरगति होना हैं
लक्ष्य अगर तेरा
चक्रव्यूह का मर्दन हैं
कोई उपाय नही केवल
तुझको अर्जुन होना हैं
इस कुरुक्षेत्र में
युद्ध ही अंतिम सच हैं
अस्तित्व की रक्षा में
धूलधूसरित होना है
प्रश्न गंभीर मुँह बाये
खड़े होंगे
हर प्रश्न पर प्रतिक्रिया देने से
नये प्रश्न अंकुरित होंगे
संचय और भ्रम
इस पथ पर
साथ के पथिक होंगे
किसको कंधो पे लेकर
तुम लक्ष्य प्राप्त करोगे
किंतु परंतु की अठखेलियाँ
मन विचलित कर देती
लक्षभेदने की उत्सुकता
एकाग्रता भंग कर देती
त्वरित समाधान किसी विषय का
ऐसे ही नही हो जाता
समयबद्ध व्यवस्था मैं
एकाकी कुंठित हो जाता
शक्तिक्षरण न हो
ये विचार सर्वविदित हो
अपने अपने खंडित
स्वप्नों पर पुनःविचार तो हो
खंडित हृदय किस बात पर
रुष्ट कोपभवन बैठा
आगुन्तक ऐसे न चुने
लाक्षागृह बन जाये
पांडव तो बच निकले
स्वयं भस्म न हो जाये
शक्ति श्रृंखला अनवरत रहे
यह प्रयास श्रेष्ठ हो
पौधा अभी नवीन हैं
धरा पर पकड़ बनाएगा
संचित निष्ठा से होता रहा
वटवृक्ष बनता जाएगा
वंशों का गठन
अकस्मात घटना नही होता
इतिहास के पृष्ठों में
उत्कीर्ण हर कोई नही होता
सतत साधना गंभीर प्रयास
आधारशिला होंगे
रामराज्य का दिव्यस्वप्न
निश्चित पूर्ण होंगे



15 जून 2018

लेख से कविता बनी: सनातनी हिन्दू विस्मित विचलित सा

आशीष धर जी ने कुछ दिन पहले फेसबुक में एक लेख लिखा था जिसमे आह्वाहन था संकल्प लेने का - अपने भविष्य को बचाने के लिए वर्तमान में कर्म करने होंगे।

उनके लेख से प्रभावित होकर मुझे लगा इसको मुझे हिंदी कविता के रूप में रूपांतरित करना चाहिए।

मेरा प्रयास आपके विचारार्थ प्रस्तुत हैं ।

संकल्प ले  - अपने भविष्य को बचाने के लिए वर्तमान में कर्म करने होंगे।


सनातनी हिन्दू विस्मित विचलित सा ।
खड़ा हुआ ठगा हुआ ।।

शताब्दियों की दासता की बेड़ियाँ में जकड़ा हुआ ।
मन तन अवचेतन ।।

कभी तुर्क कभी मंगोल कभी मुगल ।
कभी बरतानी, कभी फ्रांसीसी कभी पुर्तगाली ।।

बंधनो से स्वतंत्र हो कर भी पराधीन स्वप्न से घिरा हुआ ।
खड़ा चौराहे पर सनातनी ।।

प्रताड़ित सोच उसका अस्तित्व ।
पिछड़ा बोलकर खड़ा पीछे किया ।।

फिर खींचते उसको हैं क्यों उलझे भविष्य में ।
ठगा से बुझा सा खड़ा चौराहे पर सनातनी ।।

कभी सोच में भी यह विचार आया नही ।
करना राज हमको इस धारा पे हैं ।।

गुजरे हुये रास्तो में कलियुग के विराम आये हैं ।
जहा भयानक, कुछ एहसास पाये हैं ।।

हम जुड़ रहे हैं उनसे जो खत्म कर देंगे ।
अपनी आकाशगंगा में अपने को ही भस्म कर देंगे ।।

खड़ा उस - इस काल की देहलीज पर सनातनी ।
वही सहमा डरा विस्मित सनातनी ।।

देते नव नवीन निर्मित संगठन ।
ज्ञान के चिथड़े कुछ ।।

सम्हाल धरा अपनी सावधानी से ।
ओ सनातनी ।।

शौक शिकार का इतना नही था जिसे ।
उसे बता रहे बचाने बाघ हैं ।।

पेड़ काट मत कर न बेरहमी ।
जता रहे उसको जो चिपके पेड़ से ।।

ज्ञान की रेतीली बौछार में ।
खड़ा सुन रहा आंख बंद कर सनातनी ।।

धरा पर भरपूर बिखरे हर रंग को ।
निहारता आया हैं पथिक सनातनी ।।

घने जंगलों कलकल नदियों ।
दूब ढकी चट्टानों के मध्य अठखेलिया खेलता था सनातनी ।।

जल जीवन हैं मानकर सहेजता था सनातनी ।
आज गंगा में धुल रहे चमड़ों और घुल रहे जहर से भुझा खड़ा हैं सनातनी ।।

देखकर पिंजर को गंगा में ।
भभक उठता हैं चौराहे पर सनातनी ।।

जुग सहस्त्र योजन पर भानु ।।
गद्य और पद्ध में लिखे हुये हैं ।
विज्ञान और गणित के मर्म ।।
सोच सनातनी विस्मित हैं ।
क्यों हो रहे वर्तमान में थोथे प्रसंग ।।

छिड़ी प्रतियोगिता कूपमंडूको में ।
की निंदक पद्ध किसका हैं प्रासंगिक ।।

संस्कृत की व्यवहारिकता पर उठता शोर कर्कश हैं ।
बाल मन पे प्रभाव क्या होगा यह अदभुत हैं
क्रोध उबलता सनातनी सन्न हैं ।
प्रश्न की उपयोगिता पर दंग हैं ।।

सोच यह विरोधाभास खड़ा चौराहे पर ।
संचय मैं मग्न हैं वो सनातनी ।।

हे राम बोलकर धरती से प्रस्थान किया बहुतो ने ।
राम नाम सत्य हैं बोलकर फूकते श्मशान में ।।

अब बहस करते भगवान् के अस्तित्व पे ।
बड़ी हिम्मत से लड़ रहे राम न्याय से  ।।

जिस नाम की माला जापे जापे ।
हिन्द महासागर के वासी ।।

जम्बूद्वीप से सुमात्रा तक प्रभाव उसका छाया ।
कृष्ण राम शिव पर काली छाया का साया ।।

कैसा घोर अंधियारा का ग्रहड़ लगा नाम पर ।
राम को ही खड़ा करा कठघरे में आनकर ।।

लौकिक है या अलौकिक इसकी बहस नही हैं ।
शून्य से अनंत उसका प्रभाव यही है ।।

अपने भगवानो के भग्नावशेष समेटे ।
खड़ा सनातनी चौराहे पे फिर लिए आस के झोले ।।

नालंदा की आग तीन मास जली थी ।
पर उस आग में ज्ञान की चिता जली थी ।।

बख्तियार खिलजी अनपढ़ था और औरंगजेब सयाना ।
वंशज और पूजक इनके अब भारत के टुकड़े करवाते ।।

गुरुकुल मैं विद्या अर्जन करके विद्वान बन जाते ।
यवनी चीनी मलय भिन्न भिन्न विषयों को चुनते ।।

अबके कुछ बिगड़े तो बेच दे अपनी माता ।
विश्विद्यालय बन रहे गद्दारों के अड्डे ।।

फिर इसी यक्ष प्रश्न से घिरा हुआ हैं वो ।
सोच रहा बिन साधना के विद्या धन मिल जाता ।।

सोच के इस भंवरजाल में फ़सा रहा अवचेतन ।
खड़ा सनातनी चौराहे पे फिर लिए मन भारी ।।

श्याम वर्ण में सजे हमारे बाँके कृष्ण मुरारी ।
उनके भक्तों पर लगते आरोप बड़े बेमानी ।।

सनातनी को बना दिया सर्वोच्च महा शाक्तिशाली ।
लगा दिये आरोप उसपर रंगभेद के सारे ।।

सनातनी शक्तिविहीन क्या समझे ये खेल ।
हिटलर सा बता दिया करके यह मेल बड़ा बेमेल ।।

सारे नये समतावादी खंडित कर रहे परंपरा ।
जो नही सनातनी का वो कर रहे हैं उसका ।।

सोच और विचारों में कही भक्त का रंग नही हैं ।
इस नगण्य को जोड़ रहे भगवन के आशीषों से ।।

हर रंग में रंगा सनातनी खड़ा उसी चौराहे पर ।
बेरंग हो गया उसका चोला आरोपो की साज़िश मैं ।।

आर्यावर्त के वासी पर भार पड़ा हैं भारी ।
उसको ये साबित करना हैं वो हैं कल्पवासी ।।

संजय रूपी भेष में घूम रहे चोले वाले ।
कर रहे पंथ परिवर्तन, देके झांसे और कहानी  ।।

झूठ की जड़ अब बढ़कर सर्पबेल हो गई ।
उज्ज्वल इस धरा को विषसंचित कर रही ।।

सनातनी के इतिहासों को मिथ्या बोल दिया ।
सर पे उसके शरणार्थी का लेप पोत दिया ।।

इन कुटिल कुकृत्यो से छलनी हो गया सनातनी ।
रिसते घावों को समेटता लड़ता रहा सनातनी ।।

गार्गी मैत्रीय लोपमुद्रा अपाला घोषा ।
लक्ष्मीबाई जीजाबाई चिन्नपा नाम बड़े इतिहासी ।
जिनके ज्ञान शौर्ये के वर्णन बड़े प्रेरणकारी ।।

जब तनो पर वस्त्रों के बोझ बहुत नही थे ।
पर मनुष्य की आंखों में लज्जा बहुत बड़ी थी ।।

उन्मादी अत्याचारी व्यभिचार लेकर आये ।
लज्जा कही दूर हटा कर वासना दिखाई ।।

वक्षो को कम ढ़का देखकर ।
बिन क़ासिम जैसे भौचक्के ।।

थोप दिए कानून रिवाज़ ।
जो रेत के ढेर में पनपे ।।

सर ढ़ककर अब महिलाओं की ।
हिमायती बड़ी मिलती हैं ।। 

काले कपड़े में लिपटकर ।
बड़े प्रवर्चन बकती हैं ।।

देख सनातनी क्या था तू क्या तू हो रहा हैं ।
इसी प्रश्नों के चक्रव्यूह में घिरा पड़ा हुआ हैं ।।

फिर सनातनी चौराहे पे खड़ा हुआ हैं ।
अब उसका तन भी संपूर्ण ढ़का छुपा पड़ा हैं ।।

गौतम ने न्यायदर्शन मैं लिखे शास्त्रार्थ के नियम ।
गार्गी - यज्वल्य शंकर - मिश्र मध्य हुए ज्ञान मंथन चरम ।।

परस्पर स्पर्धा का धेय था सत्य की खोज ।
किसी पक्ष को नही था अपने प्राणों का संकट ।।

भग्नवशेषित विरासत खड़ी धर्म की नींव पर ।
संचित सींची परिष्कृत हैं तर्कों की विधाओ से ।।

अब सनातनी श्रापित हैं वर्तमान के कोलाहल में ।
उसको बता रहे क्यो उसका मत बेमानी हैं ।।

सहनशीलता की परिभाषा उसके गले फसाई हैं ।
जिसकी वाणी कई बरसों से धीमी और घबराई हैं ।।

सहन कर रहा सनातनी हर तीर, जो उसको भेदे हैं ।
उपहासों के झंझावर्त में वो निष्क्रिय और अकेले हैं ।।
मुक्त स्वर सबका सुन गूंगा बना हैं सनातनी ।
अपनी सीधी बातों को रखने से डरता सनातनी ।।

तर्कों को अपने हृदय के अंधियारे में छुपाये ।
प्राण प्रतिष्ठा रक्षित हित पूर्ण खड़ा सनातनी ।।

शाक्ति की महिमा जान कर कुछ लोग सयाने हो गए ।
सत्य असत्य ज्ञान तर्क शाक्ति सम्मुख नतमस्तक ।।

यह युक्ति समझ परे हैं, सनातनी से शायद ।
इसीलिये वो फ़सा पड़ा, मध्यमार्ग का कायल ।।

कब तक वाणी को अपनी, मद्धिम स्वर का रखोगे ।
अपने मंदिर अपने भगवन, को कब मुक्त करवाओगे ।।

कब तक अपनी व्यथा को कथा बनाओगे ।
कब अपने कर्तव्यों का निर्वाह कराओगे ।।

सत्य सुनाओ सत्ता को उनकी निंद्रा तोड़ो ।
भटके बजरंगी के जामवंत बन जाओ ।।

स्मरण रहे क्या दिनकर के कथन थे ।
मत भूलो गीतोपदेश जिसमे सत्य सारगर्भित हैं ।।

सहनशीलता, क्षमा, दया को, तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके, पीछे जब जगमग है ।।

कर्मो की श्रृंखला में पूर्ण विराम न आये ।
फल की इच्छा से कर्म न कही बंध जाये ।।

ओ सनातनी तेरे ऊपर संस्कृति आश्रित हैं ।
पुरातन पूज्य इस भूमि का तू ही उत्तराधिकारी हैं ।।

भगीरथ प्रयत्न करने पर गंगा आएगी ।
अपने पुरखों की धरती की तब जय कहलाएगी ।।



11 जून 2018

आंखों देखी मन से टटोली कलम से लिखी

गिद्धों के गिरोह के मुखिया और मुखियेने जब चार दिन में चालीस सेकण्ड्स की कोई बात अकस्मात कर देते हैं तो गिद्ध गिरोह के समर्थक चालीस दिन तक चहुँओर चिचाहते रहते हैं।

यही जब गरुण दल के मुखिया गलती से कुछ गलत बोल दे तो गिद्ध तो टूट पड़ते ही हैं गरुण दल के समर्थक ही मुखिया पर पिलपड़ते हैं।

गरुणेश की बातों का पोस्टमार्टम रोज अनवरत रूप से चलता है, इससे पहले के मुखियाओं पर नजरें इनायत करे तो पता चलेगा जो बोल नही सकते वो अति वाचाल देश पर थोपे गये।



25 मई 2018

क्या तीर मार लिया

नोटबन्दी की तो को से तीर मार लिया राहुल गांधी जी अखिलेश यादव को कहते तो दो मिनट में हो जाता

GST किया तो मैं क्या करूँ तेजस्वी यादव तो gst का माहिर खिलाड़ी हैं ca भी फैल हैं उसके आगे

पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की - बोल तो ऐसे रहे हो की पाकिस्तान के टुकड़े कर दिये, ममता बनर्जी दीदी रक्षा मंत्री होती तो अफगानिस्तान तक का इलाका हमारा होता

आधार को धार दी तो क्या मोदी को माला पहनावे

हमारे नंदन ने तो पहले कर दिया था सबके पास था और शरद यादव जी तो उसका भरपूर आनंद उठाते
आयुष्मान भारत किया तो क्या सबके घर में अस्पताल खुलवाया क्या जानवरों के लिए तो कुछ न किया थरूर साब होते तो सबको हवेली पे जाकर मलहम लगाते

बैंको में खाते खुले तो क्या लडडू बाटू, मेरे खरे में 15 लाख क्या आये बात करते हैं
स्वछ भारत अभियान चलाया , अब तो ससुरा टट्टी भी नही कर सकते हमारे केजरीवाल होते तो 1500 करोड़ जकूजी विथ पोट्टी सीट महँगी वाली लगवा देते।

मुद्रा योजना अबे चुप मुद्रा मुद्रा लगा रखी हैं एक घुसा मारूंगा मुख मुद्रा पलट जाएगी

अच्छा ठीक हैं भी अबकी बार नोटा सरकार, मोदी जाए जेल के पार - ससुर 2002 में बहुत नौटंकी किये रहा




21 मई 2018

Why modi is like this - an attempt to explain

This piece I have written some time back and feel it's relevant for discussion going on and will go on till 2019.

Note: This is written by a bhakt, bhajan mandli member, vyakti poojak so if you discover that after reading please stop reading beyond this point.

Long list of unfulfilled promises and which are disturbing us to core.
First let us list down the issues on which we think nothing has been done or radio silence has been maintained

1) Ram mandir construction.
Allahabad highcourt after long wait delivered a judgement which delivered trifurcation of ownership. The judgement was rightly challenged into supreme court. Matter will soon get hearing from honourable supreme court. Judgement is awaited.
Keeping aside the fact that matter is in supreme court, what could have been modi sarkar approach.
(a) opt for early listing and hearing 
(b) constitution amendment to declare ram janmabhoomi belongs to hindus 
(c) out of court settlement to convince court that matter will be amicably solved by Hindus and Muslims - Muslims will leave claim and alternate piece of land will be allocated to them
(d) convincing Hindus and Muslims to turn disputed land into some secular structure.

In my personal opinion #d has no value for us hindus - a crappy option . #c few civil society groups tried this willingly but failed miserably - failure was not their fault, tHe main issue was long list of stakeholders and mischief mongers. #a was not opted by government but individuals like Dr Subramanian Swami - the issue was pledged before courts and after significant delay court agreed  with certain caveats. #b was solution which was never discussed widely and gained currency in whatsapp groups and mutual views groups.

2) Repeal of RTE

3) Repeal of reservation or giving reservation on basis of financial status.

4) Why Indian economy is not market driven, why it's socialist in nature.

5) Why Hindu temples control are in government hands

6) Why article 370 is not thrown out.

7) Why government is not doing anything for kashmiri pandits settlement.

8) Why government is not changing constitution to declare india as hindu state

9) Why rohingiyas are not thrown out

10) Why personal income tax is not stopped.

11) Why government is not putting Robert vadra, sonia gandhi, rahul gandhi, chidambaram in jail.

12) Why modi is not developing his own Eco system it's own deep state.

13) Modi has done nothing for Hindu.

14) Modi should throw Muslims out of country and for that if new partition is needed so be it.

So many unfulfilled promises.

And many more are missing too. F
rom my side grave list of 14 till now.

All unfulfilled topic and issues will require separate handling I believe.
Here is little long personal explanation. 

Why some promises and issues are still left untouched or not even attempted.

We need to see the years of 2011 to 2014 what was the situation how country was going through bumpy ride and shame of corruption.

In that years of policy paralysis people were yearning for change, they voted wholeheartedly and gave reins of power to modi.

Modi was declared prime minister candidate by backing of karyakarta, lot of so called big leaders were not in favor of modi.

Not because they feared him but because they never considered him equal.
He is not from upper strata of society and he was sevak to many big leaders of bjp before being offered the CM ship of gujarat.

Gujarat was never a big state in terms of political power so he was merely a kshetriye leader.

The results of 2014 were earth shattering even the most optimists would not have thought about the sheer numerical strength and absolute majority on its own.

My theory is modi was not prepared for this majority mentally, which reflected in huge Utopians promised in manifesto or vision document.

And moreover there was no solid roadmap to fight the forces adamant to break india and unleash civilizational war.

There was no blueprint in reality only ideas.

The first step to fight this war is unity in rank and files of sanatan dharmis, a vrihad hindu samaj - unification of varna and jati Factions.

Till UP election the consolidation kept happening of dalit, obc, sc, st, maha dalit and so on - all diverse disintegrated divisive factions of vrihad hindu samaj.

RSS was also mobilizing dalits, wooing them, according respect equal treatment, temple entry, priests from dalit community, one well unity at village level, various programs were ongoing to build cohesive samaj of factionalized hindus.
Modi himself was visiting temples at regular intervals, participation in ganga arti, shiv darshan etc.

These all were signals to wider hindu audience, whatever he could have done to symbolize and strengthen hindu ethos he did that. 

Remember he cannot endorse something fully being a PM, he can only drop gestures. Some gestures are clear and can easily be understand with rattling sounds emitted out by lutyens darbari's

But being the head of india and been head of state is different, when in gujarat new delhi was not very interested but a new master in delhi is alarming to establishment mercenaries in form of NGO owners, big industrialist, IAS, weapon dealers, real estate mover and shakers, media honchos, film stars, international agencies etc.

Normally they have generated humongous powers in era of coalition government.

This has changed now no one has any power left, no one can guarantee a job will be done on his whims and fancies, not anymore.

The mightiest have lost their sheen and series of laws and anti corruption steps have defanged many.

Not many have been shamed but lot many are in constant fear.

They have now unleashed the residual power they have and series of seemingly unrelated event's are in some strange coincidence getting synchronized.

This all is sapping energy and I think making modi (may be) paranoid, which has resulted in some miscalculation and missteps.

One thing is pretty evident for normal day to day running of government modi has not given too much autonomous-ness to his cabinet colleague.

If for simple thing he is not trusting people much, how he will trust people to form fighting file to defeat breaking india forces.



20 May 2018

क्यो इतना कोसे मोदी को

इतना क्या मोदी को कोसना भाई लोग

कुछ तो सोचो
आपके घर का ही हैं

घर से ही अगर साथ नही मिलेगा तो क्या होगा ?

माना की बहुत कुछ हमारी आशाओं के अनुरूप नही हो रहा

इसका मतलब यह तो नही हैं की हम इतने कुंठित हो जाये की शाप देने लगे।

कुछ भी नही बदल हैं क्या या जो बदला हैं वो हमें नही दिखाई दिया क्योंकि हमारे आस पास हमारे प्रभाव क्षेत्र में नही बदला।

30 साल के बाद सत्ता में आमूलचूल परिवर्तन आया हैं।

इस टेक्नोलॉजी प्रबुद्ध युग में खबरे घटने से पहले घट जाती हैं विधुत गति से संपर्क स्थापित हो जाता हैं।
पुराना कुछ भी यथा  स्वरूप लागू नही हो सकता।

बदलाव के कई आयाम हैं
कुछ आयामो में हम हैं. कुछ में नही।

पर मेरा निजी मत हैं की अपने ही अगर इस तरह कुंठित हो जाएंगे नकारात्मक हो जाएंगे तो वृहद हिन्दू परिवार बिखर जाएगा।

कई मोदी लगेंगे सम्पूर्ण बदलाव में पर उतने हैं नही।

इसलिए या तो मोदी बनाने पड़ेंगे या ढूंढने पड़ेंगे या खुद मोदी बनना पड़ेगा।

बदलाव की मंथर गति को तीर्व करना भगीरथ प्रयास होगा

एक मोदी को बनाये रखे और दूसरे मोदी को लाये पर सत्ता सूत्र को खंडित न होने दे।

खंडित होने के बाद फिर जटिल प्रयासों के बाद सत्ता प्राप्त होगी।

अपने जीवन काल में सम्पूर्ण परिवर्तन के लिए परिवार अखंड रखना होगा

कुछ कमियों को खाई न बनने दे पाटने में हमारे जीवनकाल के साथ हमारे बच्चो के जीवनकाल भी खप जाएंगे



19 मई 2018

On eve of karnataka assembly results 2018

Deep lessons for BJP, it's voters and fence sitters.

Yediyurrapa registered his name in the annuls of political history and will become another name in list of ultra short term chief minister.

BJP was short of numbers and the deficit turned out to be huge in end.
What are lessons from this.
1) BJP should never aim less then the target, they need to be aware of the fact that even one less is lethal.
2) BJP voters should realize that their party is hated one political circles now the reason is Narendra Modi.
3) Political parties or their MLAs know they will not get moolah in return of their support as control likes with modi-shah and any personal hain will not be entertained for long.
4) Fence sitters and sympthesizers should exercise their vote just moral support or verbal support is not enough.
5) 2019 will be tough and every seat will count. Lethargy will damage all good work done.

Change is happening, it may not be happening with momentum and speed of our liking.

Have patience becoming a big party dont happen if change would not have been happening.

People are getting touched for some life will not be same anymore.
Dont punish the hardworking PM, you should see how he is still focused after daily attack.

He is listening and responding to suggestion with solutions. Our voices are received. Its our duty to send our messages clear of noise.


19 may 2018

जे एन यू से दुखी इंजीनियर बंधु

कुछ दिन पहले एक मित्र मिले, बड़े परेशान से थे इंजीनियर थे इस लिए उनके दुख सुख से भली भांति परिचय था। मैंने पूछा क्या हुआ क्यो मुँह लटकाए घूम रहे हो। बोले क्या बताऊँ अपनी पूरी शिक्षा ही बर्बाद लगती हैं। 

क्या हम इतने गये गुजरे हैं की हमको कोई टीवी की बहस में नही बुलाता पूरा जीवन व्यर्थ है। जब इंजिनीरिंग करी थी तो बिल्कुल नहीं सोचा था की एक दिन एक jnu वाले के सामने हम बेमतलब और आउट ऑफ स्पेस लगेंगे। 

मैंने पूछा किस jnu वाले से आप अपना मापदंड कर रहे हो साइंस वाले से या हयूमैनिटिज़ वाले से। क्योंकी साइंस वाले तो ज्यादा चर्चा में रहते नही हैं। आर्ट्स और नॉन साइंस वाले ही ज्यादा लाइमलाइट में लिपटे नज़र आते हैं।

वो बोले कुछ भी हो भाई नॉन साइंस वालो का जलवा हैं।

बाबू ऐसा न सोचो, jnu थोड़ा दूसरे टाइप का जगह हैं उहा पीपल का पेड़ के मोटी डाल पे सुना हैं भूत भूतनियों ना ना प्रकार की क्रियाएं करती हैं।

जो ऊपर नही चढ़ पाते वो पीपल के नीचे ही अपना जमघट जमा लेते हैं।

तोहार जैसा सीधा साधा उहा जायके सीधा नही रह पाता जैसा पलंग के ऊपर निवाड़ बुना जाता हैं ना सलीक़े और कायदे से पर परत दर परत होने से मजबूत हो जाता हैं वैसे यह भूत भूतानिया लोग तुम पर जादू टोना करके उल्टा सीधा इतिहास के इर्दगिर्द बुन दिया होता तुमको।

बाल मन कोमल होता हैं कुछ भी समझा दो समझ जाता हैं।

मिया मार्क्स एक ऐसा साहित्य इन भूत भूतानिया लोगो को दे के गये हैं की दुनिया में करोड़ों इन्ही मार्कसुआ के चक्कर में भूतगति को प्राप्त हुए।

उल्टे पैर वाले जब संघर्ष, मालिक, नौकर, बुर्जुआ, लाल सलाम, हँसिया और हथौड़ा सब की बात करते हैं तो बाल मन मुग्ध हो जाता हैं, सिगरेट के धुएं में संघर्ष करता किसान का वृतांत, thermodynamics, स्ट्रेंथ ऑफ machines एंड मटेरियल, डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक, fourier transform से कही ज्यादा रूमानी लगता हैं "अमार नाम तूमार नाम वियतनाम वियतनाम" का नारा सस्ती व्हिस्की और महंगी विचारधारा के संभोग से जन्म लेकर वीर्यवान गुबारे में समा कर जब किसी के ऊपर तथाकथित ब्रह्मांड की सबसे कुटिल कुत्सित सोच वाली प्रवर्ति धारण किये हुए लोगो के समूह जिसकी संख्या निरंतर दक्षिण पथ अग्रसित हैं उसके तथाकथित रंग भरे त्योहार के पहले पड़ता हैं तो पता लगता हैं की jnu में पढ़ा हुआ बच्चा iit से पढ़े हुए बच्चे का कैसे बाप हो जाता हैं।

इस लिए बाबू जो अलख जगाने निकले हो बिना jnu जाकर उसका धन्यवाद मार्तण्ड मंदिर में चढ़ा देना नही तो अलख जलाना और आग लगाना करीब करीब ही हैं।

बाकी बाबू समझदार तो तुम बचपन से हो पर कभी घमंड नही किया होगा, पर अब समझदार के साथ असरदार बनो


जय श्री राम


20 अप्रैल 2018

जोम्बी कथा

जोम्बी बन जो फिरे
रहे न काबू कोय

कोई उठाय कार्डबोर्ड
गलत सलत बौराये

इच्छा मन मे रहे
कई हिलोरे खाये

हिन्दू को कैसे डसे
मौका कोई न जाये

वीर्यवान गुब्बारा भयो
फूटे तरुणी के सर

दिव्यदृष्टि सो भांप लियो
हिन्दू को ये काम

भगवा रहित भूमि पर
खून बह रहो लाल

सनातनी सोचे खड़ो
झटकों या हलाल



19 अप्रैल 2018

Syncronized Outrage - Mystery of outrage

One mystery is very mysterious to me please demystify this for unsuspecting brain or maybe I am reading too much into it.

Since December end or so, many narratives are getting build up against Modi Sarkar, events happening, events getting discovered, events getting manufactured all happening coincidentally at a very regular interval or I may call them "mysterious synchronization of seemingly unrelated event's" why synchronization because public outrage, media attention, studied silence by government of the day then some knee jerk reactions, social media outrage and instant opposition parties connect with the events is credulous....

This mysterious chaotic cacophony is not getting any major response from head of Modi Sarkar. In a way, modi's lack of response is creating more synchronize chaos, more chaotic then the previous one more cacophonous and hitting new heights of orchestrated crescendo.

Mysteriously, old crescendo gets replaced by new one periodically with lessening in between intervals.

The events or incidents or instances which are happening are regular in nature but response and outrage it is generating is peculiar.

Intellectual community, media personal, retired bureaucrats, judicial s, film stars, writers, industry owners all who can influence civil society are synchronizing their views with cacophony.

Maybe it's not the case, but mysteriously what seems natural is artificial.



13 April 2018

आमरण अनशन

अरे बड़े भाई कल क्या कर रहे हो
अरे छोटे हम कल आमरण अनशन पर हैं
अच्छा बड़े भाई पहले कभी रखे हो उपवास
नही, इससे पहले नही रखे हैं
जन्माष्टमी या फिर महाशिवरात्रि
नही, हम नही रखे हैं
अच्छा बड़े भइया तो आपको फिर
सूर्य उदय के पहले कुछ खा लेना पड़ेगा
और फिर सूर्य अस्त के बाद खाना होगा
कुल मिलाकर 12-14 घंटे का हो जायेगा
अब आप मुस्करा क्यो रहे हो बड़े भइया
अरे छोटे युवराज जी के साथ रखना हैं अनशन
अरे बड़े भैया क्या अंट शंट बोल रहे हैं
इतने सुंदर दिखते हैं डिंपल प्यारे
की आपको क्या बताये भैया रीना का दिल
आया रहता हैं डिम्पलो में।
अरे छोटे रीना को बोल डिप्लोमा पे ध्यान दे
डिम्पलो पे नही
अच्छा बड़े भैया बोल देंगे आप तुनाकिये नही
पर आप सीरियसली युवराज कुमार
के बारे में सोचिये
उनसे हो नही पायेगा, कुछ अनिष्ट न हो जाये
अरे छोटे जब युवराज कुछ करते हैं तो अपनी
सिग्नेचर स्टाइल में करते हैं
मतलब भैया वही बारबेरिक जैकेट में
दिल्ली में गर्मी मन
पक्का डिहाइड्रेशन हो जाएगा
अरे छोटे वो बारबेरिक नही बरबरी जैकेट होती हैं
तुम स्किल इंडिया की इंग्लिश क्लास में क्या सीखते हो
अरे बड़े भइया हम तो पहले बर्बरीक को जानते थे या
बुरबर्ग अब थोड़ा जान गए हैं थोड़ा मेहनत करेंगे तोऔर
जान जाएंगे, मेहनत तो कर रहे हैं पर बड़े भैया
भारत से इंडिया में आना हैं तो क्या करे अंग्रेजी की पूंछ तो पकड़नी पड़ेगी




9 अप्रैल 2018

नई सुबह नया कल

कल एक नई सुबह होगी
जो आज से थोड़ी अलग होगी

कल जो हम सब थे
उससे बेहतर कल होंगे।

उम्मीद नये सवेरे की
जीवन को गति देती हैं

कर्म का फल मिलेगा बिल्कुल
बस कर्मशील होना हैं

बीती रात में मिट गई
स्मृति अगर कुछ खंडित थी

नये सवेरे में गढ़नी हमको
कविता नई उमंगों की।


जीत की बधाइयां निर्वाचित प्रतिनिधियों को
और जो मंजिल से कुछ दूर रह गये उनको
भी बधाई की वो लड़े और जम के लड़े
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले



8 अप्रैल 2018

Rahul Gandhi - beyond gaffe, fake humbleness.

After seeing the live gaffe, edited videos, election rallies, interaction with students, and civil society of Rahul Gandhi, mixed thoughts cross the minds for some the emotions are to be sympathetic and for some its disgust.

Why Rahul has to go through all this humiliation, Should people be so judgmental about these things, a learning politician goes through ups and downs.

Why after so many goofups, slip of tongue, foot in mouth moment he is still around, why he is given so much privilege in media and slight turnaround in his political fortune is deduced as his comeback moment.

All what is negative is not having any juice which can be debated, so author will try to analyze why the positive cited with him are false positives.

In authors view the first genuine interaction which he had in open forum was with Arnub Goswami just before 2014 election.

As it was perceived that time that arnub rips apart the interviewee, it was pleasant surprise that his interview with Rahul Gandhi went without any pyrotechnics.

Interestingly the interview itself was not newsworthy but the aftermath of it presented a youth leader hollow with ideas, conviction, coherency and purpose.
From that to latest about NCC-MRI-ISIS-DOKLAM, we have seen Rahul Gandhi as very ordinary person who is just listened because he belongs to nehru-gandhi ancestry.

Why he is so incoherent with his thought process, few reasons author can conclude -  Rahul Gandhi lacks "Swadhay - self initiated learning", disconnect with history, disconnect with current affairs, faking humbleness.

Last point need elaboration. His replies to queries with which either he is unaware or not updated carries peculiar behavior.

Author don't know the word to describe but it's very prevalent in people who are rich and has been advised by their well-wishers to play down their privileged upbringing and don't be pretentious.

Rahul shows his ignorance, accepts that but tone and expression shows "ok I don't know what you are asking but I don't care about it because it's only a privilege I am extending you to ask some stupid question".

In simple words it's like saying ok I have Versace suit, but I can live without it because I have other suits of more expensive brands and I also know you are pointing it to me because you cannot afford to have it.

It's pretentious of Rahul Gandhi to show humble ness and ignorance. He wear it proudly on his sleeves.

For a person of same age, heading a business or being entrepreneur or having successful career, life will not give so many comeback moment.

It's only that congress party has been reduced to dynasty subservient, unending privileges are bestowed upon certain Rahul who is also a gandhi.




28 march 2018

Suggestions on making Noida-Greater Noida (NGN) as innovation and ICT hub of India.

Honorable Prime Minister India
@narendramodi Jee and Honourable Chief Minister uttar pradesh @myogiadityanath Jee @PMOIndia  @CMOfficeUP


Respected Sir,
I have few suggestions on making Noida-Greater Noida (NGN) as innovation and ICT hub of India.

NGN area currently have many IT  companies but size of operations is not big as it is in other IT cities of India in particular bengaluru.

In NGN we don't have big brands semiconductor companies like INTEL, NVIDIA, Texas Instruments, Analog Devices, Maxim Integrated etc. 

These companies have R&D facilities in Bangalore. Many of big brands in software R&D is not having active presence in NGN area.

My suggestion is following wrt above background.
Convince and Invite big semiconductor and Software technology oriented companies to establish their R&D in NGN area. (Amazon, Facebook, Google, Twitter, Intel, Apple, NVIDIA. Detail list can be provided if my suggestion find some traction).

Invite companies which are involved in development and R&D of IOT, AI, Big Data, Block chain technology, Defense technology, all who are dealing with emerging, new generation technology.

Invite sector expert technology based or oriented companies in food processing, drip irrigation, aqua phonics, water desalinization, wind turbine, solar cell, batteries, advance agriculture and farm equipment, cold chain, water management, water purification, river and water bodies.

For industrial defense corridor invite companies which manufacturer guns and ammunition required by up police, PAC, para military forces.

Image stabilization, image detection companies of israel. Israel has been market leaders in defense RnD. 

We should focus on bringing companies who are already suppliers to india.

UP government should revive the proposal of establishment of CHIP FABRICATION. 

There are many technology which fab caters to, it's important to select right team to figure out what is commercially viable option. 

Companies which have expertise in this are STMICROELECTRONICS, Intel, Samsung, TSMC, Global Foundries. 

One way is to ask chip fabrication companies to establish their operation in NGN or follow the consortium path as was approach in past.

Inviting an convincing high tech industry specially the R&D activities bring required gravity and will give necessary face lift to our state.

These industries may not bring too many low end jobs but will bring high level of commercial activities giving required impetus to hospitality industry, real estate etc.

Another focus area can be medical and medical field related industries like diagnostic equipment and machinery, surgical equipment's, daily use items of medical and health care related industries, uplifting state medical colleges and kick-starting medical tourism.

Suggestions made are given to develop whole Eco-system which not only aims at industry per-se but taking 360 degree view of all what is required.

Our state will benefit a lot not only in terms of revenue, employment, infrastructure but also making it's presence felt in Pantheon of technology oriented development clusters of world.

If needed detail presentation can be given related to suggestions.


Thanks and Regards,



26 March 2018

में हिन्दू हूँ

अब तो वो भी कतरा के निकल जाते हैं
में हिन्दू हूँ यह बतलाकर चले जाते हैं

में क्यों इतनी चिंता में मगन हूँ
की में हिन्दू हूँ

गीता वेद का क्यो शौक चर्राया
किस चक्कर में पड़े हो भाया

गीता सार तो बहुत प्रचलित हैं
फिर तुझको क्या खिचखिच हैं

कुछ तो हैं पर छुपा हुआ
घने धुंए में घिरा हुआ

मस्तिष्क चिंतित करे चिन्तन गंभीर
तर्क हो रहे शून्य में विलीन

अनमने मन में मौन लेकर
बढ़ता रहा यक्ष प्रश्न लेकर 

बुझाये कौन की
क्यो ये हालत हैं

घूमता इन विचारों की भवंर में 

टकरा गया घूमता हुआ ठहरी भीड़ से

हो गई साफ हर धुंध 

जब ठिठक में खड़ा हुआ
सामने उसके मेरे प्रश्न का पुलिंदा खुला

पूछ मुझको हतप्रद किया
प्रश्न उसने मुझसे बड़ा ही तीखा किया

कौन से हिन्दू हैं श्रीमान जी
जरा बताएंगे

अपने हिन्दू वृक्ष की गाथा
मुझे सुनाएंगे

में तुनका 'साहब यह क्या आप कर रहे
मेरे प्रश्न पर आप मुझसे ही प्रश्न कर रहे'

भकुटी उनकी भी दबाव में आ गई
स्वर उनका भी अब ऊंचे उठान पे था

आप का यही मसला हैं ना
की आप हिन्दू हैं

यह राग गाकर गधर्ब क्रुन्दन
हमेशा आप करते हैं
अकेले आप ही हैं बस
जो हिन्दू हिन्दू करते है

बड़े दंभ से चाल टेढ़ी चलते हैं
पूछता हूँ मैं कौनसे हिन्दू हो तुम ?

में भी ताव में आकर लाल तवा हो गया
"मेरे प्रश्न को गौर से सुनने के बाद उत्तर दे
में हिन्दू हूँ बस इतना बोला हैं और आप मुझसे
पूछते हैं में कौनसा हिन्दू हूँ"

कोई अंतर हैं क्या, दोनों एक हैं कोई भेद हैं क्या ?

हँसा धीमे से ही वो
पर हँसी कर्ण भेद गई ।

लज्जा में सिमट के
रही सही इज्जत मेरी धूल हो गई

तो बताइए महाशय
कोन से हिन्दू हो 

इन विकल्पों के किस वर्ग के
सही उत्तर हो तुम

तुम शिव को मानते हो या कृष्ण को
राम के भक्त हो या नारायण के

कार्तिकेय को पूजते हो या गणेश को
दुर्गा से डरते हो या काली से

हनुमान आत्मीय हैं या भैरव

इन सबसे इतर हो तो ये बतलाओ

यादव हो या सोनकर
जाटव हो या जाधव
मल्लाह हो या सुनार
मराठा हो या गुर्जर
पटेल हो या राजपूत
कायस्थ हो या खत्री
पंजाबी हो या रविदासी
हरिजन हो या दलित

औरत हो या आदमी

आस्तिक हो या नास्तिक

काले हो या गोरे

ओड़िया हो या तमिल
गुज्जू हो या चिंकी

गंगावासी हो या नर्मदे टटी

बताओ इन विकल्पों में से
कौन सा विकल्प हो

अभी तो मूरखनंदन तुम्हे
अति सीमित विकल्प दिये हैं

यह तुम्हे सिर्फ सामाजिक झांकी दिखाई हैं
तुम्हारे आर्थिक और परिवारिक पे
तो बस नजर ही गड़ाई हैं

तू हिन्दू हैं बड़ा दंभ भरता है
अभी तो तेरे परिवार के अंदर का
वर्गीकरण शेष हैं 

बता अब मेरे प्रश्न का क्या वजन कम था
क्यो बोलती बंद और माथे पे पसीना बहुत हैं


मेरे प्रश्नोत्तर की क्षमता समाप्त हो गई
नये प्रश्नों का द्वंद अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ

अब मैं हिन्दू हूँ या नही यह चित्र ही मिट गया
जन्म से पहले ही अभिमन्यु चक्रव्यूह में घिर गया

वर्गो के खंड में खंडित हो कर पड़ा रहा
लेशमात्र भी संघर्ष क्षमता से हटा रहा

सदियों और सहस्त्रशताब्दियों से
कायम रहा जो हिन्दू

वो धीरे धीरे नेपथ्य में सिमट रहा

शक्तियों के प्रहार से गुदा हुआ
शरसय्या पर अधमरा पड़ा हुआ

धूलधूसरित शेष स्वांस से संघर्षमय
राम राम करता अंशमात्र भी
किसी के चिंतन अब नही रहा



21 मार्च 2018