Tuesday, September 7, 2021

तुम्हारे खयाल

तुम्हारे खयाल है कि सोने नही देते
यूँ बिस्तर पर पड़े बस इधर उधर करवटे बदलते हैं
इंतेजार की जिद पकड़ लेते हैं
पर तेरे मिलने का कोई वादा तो नही था।

हर रोज ये दिल बस 
धड़कता ही रहता है
उधेड़बुन के दरिया में डूबा रहता हैं
बस तुझे ही तुझे ढूंढता रहता हैं

तूने कभी कोई इशारा नही किया
अपनी दुनिया में मुझे कोई सहारा न दिया
पर बावलो सा पता नही क्या सोच लेता हैं
दिल ही तो हैं कुछ ज्यादा ही सोच लेता है

ये कैसी कश्मकश में सब फसे हुऐ हैं
में तुझमे तू किसी में उलझे हुए हैं
जो हैं पास उसका इल्म न हैं
जो दूर हैं वो इन सबसे अनजान हैं

डूबते दिन गये शाम भी ढलती गई
रात में भी अब वही हो रहा है
ख़्वाबों को खुली आंखों से 
देखने का जुनून जारी है

खयालो को क्या कहकर समझाए
अब कोई तो उनको बताए
यू ही ना घुटने को छोड़ मुझे
कुछ जादू सा कर की सब हकीकत हो जाये

Monday, August 2, 2021

वो कहते थे

वो कहते थे हमसे की बात बिना करे
दिल को सकून नही मिलता
अभी कुछ दिनों से
कुछ बोल भी नही

एक पल की गलती 
एक गलत लफ्ज़ 
यूँ ही तोड़ देता हैं 
बातों के सिलसिले

पता नही तेरा हाल क्या है
पर में तो बुझा बुझा ही रहा
लगता तो हैं तेरा हाल भी दुरुस्त न होगा
पर ये मेरा अंदाजा ही है

कुछ वक़्त पे छोड़ दे 
कुछ हालातों पे
हर बार तेरे एतबार का
 क़ाबिल नही हूँ मैं

टुकड़े टुकड़े गुफ्तगू

ऐसे टुकड़े टूकड़े में बात का 
क्या मुक़ाम आया हैं
कहा गये वो दिन जब अल्फ़ाज़ ज्यादा थे
और वक्त कम

कुछ वक्त ही अजीब सा बदल गया
लम्हो को तरस गये की दिल की कहे
भागते रहे मंजिल का ना पता
जब रुके तो कितने दूर आ गये

इस दौड़ में तुझको भूले नही
पर चाह के भी तेरे साथ न रहे
तुझे जब चाहिये होगा सर रखने को कंधा
हम पास तेरे आ ना सके

अब रुके हुऐ तो हैं पर अकेले हैं
बस तेरी आस में दूर खड़े है
कोई दुआ तो लगे की तुझे लगे
की अब भी हम वही हैं जो थे

रोज तेरे साथ की झूठी चाह लिये
घूम आते हैं तेरे ठिकाने पर
कुछ वक़्त गुज़ार के चले आते है
खाली अरमानों की आह लिये

ना जाने कब वक़्त बदलेगा
तुझे देखने छूने और गुफ्तगू का समां होगा
यकीन तो यही है की सब दुरुस्त होगा
पर डरते हैं की अगर सब बदल गया

वक़्त का कहर

ये वक़्त भी क्या कहर कर गया
ना तुझे भूलने दिया न मिला ही सका

वो दिन थे जब तेरी आँखों से नशा करते थे
अब तो तेरी आवाज भी कीमती हो गई

कब आखरी बार तुझे बाहों में लिया था
कब तेरी खुशबू का इत्र सजाया था

अब तो भीनी सी ही याद आती है
तूने सपनो में आने की भी बंदिश कर दी

मिले जब जब हम

मिले जब जब हम
तेरी खुशबू लिये चला आता हूँ
वो आंखे वो हँसी
समेटे दिल मे अमीर बनकर चला आता हूँ

वो मिलने से पहले धड़कती धड़कन
वो मिलने पर नजरो की बाते
वो मिलने के बाद दिल का सुकून
वो सुकून लिए चला आता हूँ

कसक सी रह जाती हैं
वक़्त तो भागता सा लगता हैं
मिले बैठे कुछ पल ही बीतते हैं
बात अधूरी ही हरबार होती हैं

तुझे जी भरकर देख पाता नही
तेरे रूप को दिल में भर पाता नही
नजरो से नजर हटती ही नही
बस तेरी साँस से टकरा भर पाता हूँ

कुछ कर की सपने हकीकत बने
ये मिलने के मौके किस्से बने
थाम के हाथ कुछ आगे बने
पर सुना नही कभी की सपने हकीकत बने

जिस दुनिया में तू नही

अपनी दुनिया में रहने वाले
कुछ दुनिया की भी खबर ले
ऐसा क्या तेरे साथ हुआ
की तेरा साथ ही छूट रहा

फिक्र कर अपनी भी
अपनो की कोई बात नही
पर देख उनको भी 
जो तुझे अपना मान बैठे

तेरी दुनिया में तो कुछ
फर्क कहा हैं
जिस दुनिया में तू नही
उसे भी देखले

क्या मिल पाओगी

एक अधूरा से दिन फिर
एक बेहद लंबे इंतजार के बाद खत्म हुआ
वक्त ही न मिला मेरे दोस्त को
कुछ बोलने के लिऐ

सब कुछ किया होगा
जो जरूरी भी होगा और जायज भी
नही एहसास हुआ होगा 
कोई ढूंढता तेरी परछाई होगा

इन हालात में
में नही था
कही रहा हूँगा 
पर तेरा नही था

दूर था तो दूर ही रखखा
साथ की गुंजाइश न रही होगी शायद

कुछ पलों का साथ 
कुछ थोड़ी सी बात
कसक होती तो कुछ  कर ही लेता
इतना बेखबर तो तू यू नही होता

ये क्या राह तूने दिखाई है
ऐसी पाबंदियां की बंदिशें बनाई हैं
कुछ बेवजह सी क्या 
सजा सुनाई हैं

इतनी प्यास क्या सोच कर जगाई थी
नही मुमकिन था तो 
क्यों आये थे
बिना बात के दिल लगाए थे

तेरी पाबंदियों की हद क्या हैं
कब तक यूं ही दिल बचाओगी
कोई वक्त हैं जब मुझसे
मिल पाओगी

इन्तेजार का मोल

ये जो वक्त हैं बड़ा अजीब हैं
जब दिल का हो तो कम पड़ता हैं
जब इंतेजार हो तो 
भारी पड़ता हैं

इस इन्तेजार की भी 
अलग कहानी हैं 
किसी का करना हो तो
हर पल बड़ा हो जाता हैं
जब किसी को करवाना हो तो
इसका मोल ही नहीं होता

ये इन्तेजार भी लंबा हो रहा हैं
कितना लंबा पता नही
कुछ पल मिल भी जाये तो क्या
कुछ हो भी जाये तो क्या

विडंबना

मरा मच्छर तो खून बहा होगा
किस किस का पिये बैठा होगा
समाजी रहा होगा
समाज का पिया होगा

मच्छर मार के क्या खोया
क्या पाया
वो मच्छर था क्या उसका दोष था
सबका खून मिला होगा

मरे मच्छर के साथ
बहा दिया
खून समाज का ही बहा दिया

निरंकुश प्रहार हैं
प्रहसन का भार हैं

मेरे नादान यार

कितने नादान मेरे यार है 
बेखबर से 
कोई आके उनका 
दिल चुरा गया

वो सोचते है अब
दिल कही लगता
क्यो नही

ये सोचते
जी हमारा घबराए
उन्हें पता भी हैं
उन्हें इश्क हैं

इस इश्क़ में 
कई फना हो गये
इश्क शौक
महंगा हैं

पाबंदियां और बंदिशे

ये क्या वक़्त हो चला है
तुझे याद करने पर भी पाबंदियां हो गई है
देखना तो नसीब से परे 
आवाज पे भी ताले पड़ गये हैं

ये क्यो होता हैं की जब 
तुझे चाहने की हसरते उमड़ती हैं
तुझे मुझसे और दूर करने की
साजिश होती हैं

तेरी जिंदगी में 
मेरा वक़्त कम हो रहा है
क्या तुझ बेख़बर को 
एहसास भी होता हैं

इतना मगरूर तो तू 
वैसे न था
क्या मेरे होने से 
दिक्कत हो रही है

कोई इशारा तो कर मुझे
में कोशिश करूंगा
मेरे साये से भी तुझे
महफूज रखूंगा

इस तखलीफ़ का 
कोई मलहम तो बता
कैसे खयाल तेरे 
दिल से जुदा हो जाये

कुछ रहम कर 
पत्थर ना चला
खंजर से चुभते 
अरमान मेरे

पहरे

कैसे पहरे हो गये हैं
मिलना तो मुश्किल
बात करने पर ही पाबंदी है
दुनिया को बेवजह 
क्यों कानून बनाने हैं
हर चीज पर अब नजर बहुत हैं

मेरे पीने पर सवार

यूँ ना मेरे थोड़े ज्यादा पीने पर तू सवाल कर
मेरे कदम नही भटकेंगे इतना एतबार कर
तेरी सूरत के नशे से हो सकता हैं में लड़खाऊ
पर मेरी नजरो पर तु पूरा एतबार रख

जाएंगे जब देखा जाएगा
तू कुछ सफर तो साथ चल
में मुसाफिर हूँ बड़े ईमान का
तू कुछ कदम तो साथ चल

कुछ कोशिश करे

इतना सस्ता रिश्ता नही हैं तेरा मेरा
दिलों का मिलन हैं
कुछ तुझमे अच्छा है बहुत
कुछ मुझमे कम है
कभी मुझको तू पूरा करे
कभी में कोशिश करूँ

मेरी कोशिश हैं की बस में कुछ कर पाऊं
तेरे होंठों पर कुछ थोड़ी सी ज्यादा
हँसी कर पाऊँ
जब तक हैं मुमकिन ये करूंगा
डरता हूँ तुझे आदत न हो जाये

बात खो गई

जो बात थी वो तो कही खो गई
बस कुछ फिजूल की बात बातों में उलझे रहे

यू तो बस बात ही थी पर नश्तर सी चुभ गई
बस हम यू ही दर्द छुपाते रहे

ऐसा क्या है की मेरे नसीब में लिखा है
बिखरे कांच ही आये मेरे हिस्से में

पी कर चला गया मयखाने से वो
दो बूंद भी वो साथ पी ना सका

इतने मजबूर थे वो यू तन्हाई में भी
मुझे बोझ बताकर चले गये

ये सही है और उन्होंने सही भी किया
मुझे मेरी औकात और हैसियत बता कर चले गए

खुशबू सी तेरी याद

तुम्हारी वो याद खुशबू की
अभी भी बिल्कुल ताजा हैं
थोड़ी उलझी सी सिमट गई है
पर बिल्कुल वही हैं
आज ऐसे ही दराज 
मैं से निकल आयी
वापस रखने का
दिल नही किया
सोचा की क्या धो डालें इसे
फिर ना जाने क्या सोचकर
उसे खुद ही पहन लिया
अब लगता हैं तुम यही तो हो
यु ही बस दिल पर बस पड़ी तो हो

क्या कहना है

कुछ हैं जो दिल के किसी कोने में
सिमटा से पड़ा हैं
उसको कुछ कहना है पर
समझ ही नहीं आ रहा क्या कहना है
जो हैं वो कुहासे से सा हैं
न गहरा हैं ना हल्का हैं
कही कुछ कम हैं शायद
शायद इसीलिए हैं
कुछ हैं जो दिल में
मुड़ा तुड़ा पड़ा हैं

समुंदर की आस

दिल लगा होता तो कोई बात होती
तेरे शब्दों की मार दिल के पार होती
तू भी किनारें की तलाश में
में बैठा समुन्दर की आस मैं

ये अल्फाज यूं ही नही निकल जाते
बड़े जजपात लगते हैं इन्हें तराशने में
बेमतलब के गुनाहो की सजा मुझे क्यों  मिली
मेरे हिस्से में तेरी बारिश क्यों नही थी

ये हर रात को तेरी ख्वाहिशों के हिसाब  होते है
हर रात मेरी मजबूरी की नुमाइश होती हैं

कितना यकीन तुझे में दिला भी दूं
पर तेरी ही हर बात कायम होती हैं

बेचैन अधूरापन

दिल बस में नही
बेचैन हैं
चाह रहा हैं सब छोड़ दे
पता नही छोड़कर क्या करे
जो हैं वो क्या हैं
जो नही हैं वो क्या अपना हैं

अगर पायल होती


वो हल्के से तू उछली तो लगा
घुंगरू झनक गये
अगर पैरो में पायल होती
तो खनक जाती

वो हाथोँ से कुछ मचलती लटों
तो हल्के से हटा देना
अगर फूलो की लड़ी होती
तो बिखर जाती

वो फिर हल्के से मुस्कुरा कर
हवा में हाथों से मिठ्ठी बनाना
अगर सामने दिल होता तो
कैसे संभल पता

अपनी शरारतों पे फिर 
तेरा अंत में शर्मा जाना 
वो होंठो से शर्मीली 
हँसी का रह जाना

तुझे यूँ देखकर मन पर काबू नहीं रहता
तेरे पास आकर तुझे करीब से देखने की ललक
कुछ है तेरे रूप के सागर मैं 
हद तोड़कर बाहों में भरने को आतुर

यूँ किश्तों में तेरा मिलना
प्यास मिलने की और बढ़ा देता हैं
करते हैं शांत दिल को हम किसी तरह
पर हर बार हम दिल हार जाते हैं

Wednesday, February 10, 2021

एक टीस

एक टीस सी उठती हैं 
जब तेरी सिसकी सुनता हूँ
कुछ कर नही पाने की
खुद से नफरत होती हैं

सोचता यही हूँ
अगर तेरे पास होता
कुछ नही तो कम से कम
तेरे आंसू तो थाम लेता

क्यो तेरे पे गुजर रहे
हालातों का एहसास
मुझको होता हैं
तेरे दर्द से मेरा रिश्ता क्या है

कुछ हुआ है जो समझ नहीं आता
ये दर्द और ख़ुशी का रिश्ता क्या है

Wednesday, January 6, 2021

एकतरफा

माना की तेरी मोहब्बत
तब एकतरफ़ा थी
पर अब बंदिशों की 
गुंजाइशें कहा हैं

तू तब ठुकराए जाने के 
ख़ौफ़ में था
अब तो खौफ़ की गुंजाइशें 
कहा है

तू बात रख 
मन में मलाल मत रख
कभी तो तेरी दरख्वास्त 
मंजूर होगी

कई थे जो बस 
दिल में इश्क़ को जिंदा रखते थे
तुझे तो फिर भी काफी
नजदीकियां हासिल थी

वो दिन

वो दिन अब बस यादों के धुमिल गलियारों में
कही खो से रहे हैं
कुछ सिसकियां से कुछ बह के सूख गये
आंसुओ की लकीरों से
बस सिमटे हुए धीरे धीरे खत्म हो रहे है
लम्हों की खूबसूरत कड़ियों से बने चलचित्र मानिंद
रंगों के उड़ जाने की बाट जोह रहे हैं

फिर कब ठंडी हवा के सर्द झोंको से ठिठुरती
रात में धुएं उड़ाते उनको देखेंगे
फिर कब समुद्री हवा में घुली नमकीन
तासीर को बेपरवाह चखेंगे
फिर कब अलसाई सुबह में हल्की भूख
को कुछ बचा खाकर मिटायेंगे

कब हाथों में बिना झिझक मासूम चेहरे को
भर पाएंगे
एक हल्के छूने के एहसास से हुई सिरहन
को फिर महसूस कर पाएंगे

दिन तो बस कट ही रहे हैं की सब पहले 
जैसा हो जाये
इस खयाल को दिल में सम्हाले
अब कितने दिन और काटे जाएंगे

वो फिर

फिर ऐसे ही 
खयालो के झुरमुटों से 
तेरा चेहरा नजर आए

वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है

वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां 
मचल जाती है

कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ

भर लिया हैं चेहरे को 
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
 
थोड़ी सहम गई हैं 
ठंडे हाथ गुनगुने गालो 
को लगते ही

आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर 
कोहरा पिघला रही हैं

होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं

कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं

हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं

वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है

फिर ऐसे ही

फिर ऐसे ही 
खयालो के झुरमुटों से 
तेरा चेहरा नजर आए

वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है

वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां 
मचल जाती है

कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ

भर लिया हैं चेहरे को 
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
 
थोड़ी सहम गई हैं 
ठंडे हाथ गुनगुने गालो 
को लगते ही

आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर 
कोहरा पिघला रही हैं

होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं

कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं

हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं

वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है