फिर ऐसे ही
खयालो के झुरमुटों से
तेरा चेहरा नजर आए
वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है
वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां
मचल जाती है
कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ
भर लिया हैं चेहरे को
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
थोड़ी सहम गई हैं
ठंडे हाथ गुनगुने गालो
को लगते ही
आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर
कोहरा पिघला रही हैं
होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं
कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं
हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं
वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है
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