Wednesday, January 6, 2021

फिर ऐसे ही

फिर ऐसे ही 
खयालो के झुरमुटों से 
तेरा चेहरा नजर आए

वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है

वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां 
मचल जाती है

कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ

भर लिया हैं चेहरे को 
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
 
थोड़ी सहम गई हैं 
ठंडे हाथ गुनगुने गालो 
को लगते ही

आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर 
कोहरा पिघला रही हैं

होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं

कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं

हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं

वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है

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