एक अधूरा से दिन फिर
एक बेहद लंबे इंतजार के बाद खत्म हुआ
वक्त ही न मिला मेरे दोस्त को
कुछ बोलने के लिऐ
सब कुछ किया होगा
जो जरूरी भी होगा और जायज भी
नही एहसास हुआ होगा
कोई ढूंढता तेरी परछाई होगा
इन हालात में
में नही था
कही रहा हूँगा
पर तेरा नही था
दूर था तो दूर ही रखखा
साथ की गुंजाइश न रही होगी शायद
कुछ पलों का साथ
कुछ थोड़ी सी बात
कसक होती तो कुछ कर ही लेता
इतना बेखबर तो तू यू नही होता
ये क्या राह तूने दिखाई है
ऐसी पाबंदियां की बंदिशें बनाई हैं
कुछ बेवजह सी क्या
सजा सुनाई हैं
इतनी प्यास क्या सोच कर जगाई थी
नही मुमकिन था तो
क्यों आये थे
बिना बात के दिल लगाए थे
तेरी पाबंदियों की हद क्या हैं
कब तक यूं ही दिल बचाओगी
कोई वक्त हैं जब मुझसे
मिल पाओगी
No comments:
Post a Comment