ये क्या वक़्त हो चला है
तुझे याद करने पर भी पाबंदियां हो गई है
देखना तो नसीब से परे
आवाज पे भी ताले पड़ गये हैं
ये क्यो होता हैं की जब
तुझे चाहने की हसरते उमड़ती हैं
तुझे मुझसे और दूर करने की
साजिश होती हैं
तेरी जिंदगी में
मेरा वक़्त कम हो रहा है
क्या तुझ बेख़बर को
एहसास भी होता हैं
इतना मगरूर तो तू
वैसे न था
क्या मेरे होने से
दिक्कत हो रही है
कोई इशारा तो कर मुझे
में कोशिश करूंगा
मेरे साये से भी तुझे
महफूज रखूंगा
इस तखलीफ़ का
कोई मलहम तो बता
कैसे खयाल तेरे
दिल से जुदा हो जाये
कुछ रहम कर
पत्थर ना चला
खंजर से चुभते
अरमान मेरे
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