Monday, August 2, 2021

पाबंदियां और बंदिशे

ये क्या वक़्त हो चला है
तुझे याद करने पर भी पाबंदियां हो गई है
देखना तो नसीब से परे 
आवाज पे भी ताले पड़ गये हैं

ये क्यो होता हैं की जब 
तुझे चाहने की हसरते उमड़ती हैं
तुझे मुझसे और दूर करने की
साजिश होती हैं

तेरी जिंदगी में 
मेरा वक़्त कम हो रहा है
क्या तुझ बेख़बर को 
एहसास भी होता हैं

इतना मगरूर तो तू 
वैसे न था
क्या मेरे होने से 
दिक्कत हो रही है

कोई इशारा तो कर मुझे
में कोशिश करूंगा
मेरे साये से भी तुझे
महफूज रखूंगा

इस तखलीफ़ का 
कोई मलहम तो बता
कैसे खयाल तेरे 
दिल से जुदा हो जाये

कुछ रहम कर 
पत्थर ना चला
खंजर से चुभते 
अरमान मेरे

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