Monday, August 2, 2021

समुंदर की आस

दिल लगा होता तो कोई बात होती
तेरे शब्दों की मार दिल के पार होती
तू भी किनारें की तलाश में
में बैठा समुन्दर की आस मैं

ये अल्फाज यूं ही नही निकल जाते
बड़े जजपात लगते हैं इन्हें तराशने में
बेमतलब के गुनाहो की सजा मुझे क्यों  मिली
मेरे हिस्से में तेरी बारिश क्यों नही थी

ये हर रात को तेरी ख्वाहिशों के हिसाब  होते है
हर रात मेरी मजबूरी की नुमाइश होती हैं

कितना यकीन तुझे में दिला भी दूं
पर तेरी ही हर बात कायम होती हैं

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