दिल लगा होता तो कोई बात होती
तेरे शब्दों की मार दिल के पार होती
तू भी किनारें की तलाश में
में बैठा समुन्दर की आस मैं
ये अल्फाज यूं ही नही निकल जाते
बड़े जजपात लगते हैं इन्हें तराशने में
बेमतलब के गुनाहो की सजा मुझे क्यों मिली
मेरे हिस्से में तेरी बारिश क्यों नही थी
ये हर रात को तेरी ख्वाहिशों के हिसाब होते है
हर रात मेरी मजबूरी की नुमाइश होती हैं
कितना यकीन तुझे में दिला भी दूं
पर तेरी ही हर बात कायम होती हैं
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