Wednesday, January 6, 2021

वो दिन

वो दिन अब बस यादों के धुमिल गलियारों में
कही खो से रहे हैं
कुछ सिसकियां से कुछ बह के सूख गये
आंसुओ की लकीरों से
बस सिमटे हुए धीरे धीरे खत्म हो रहे है
लम्हों की खूबसूरत कड़ियों से बने चलचित्र मानिंद
रंगों के उड़ जाने की बाट जोह रहे हैं

फिर कब ठंडी हवा के सर्द झोंको से ठिठुरती
रात में धुएं उड़ाते उनको देखेंगे
फिर कब समुद्री हवा में घुली नमकीन
तासीर को बेपरवाह चखेंगे
फिर कब अलसाई सुबह में हल्की भूख
को कुछ बचा खाकर मिटायेंगे

कब हाथों में बिना झिझक मासूम चेहरे को
भर पाएंगे
एक हल्के छूने के एहसास से हुई सिरहन
को फिर महसूस कर पाएंगे

दिन तो बस कट ही रहे हैं की सब पहले 
जैसा हो जाये
इस खयाल को दिल में सम्हाले
अब कितने दिन और काटे जाएंगे

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