Wednesday, January 6, 2021

एकतरफा

माना की तेरी मोहब्बत
तब एकतरफ़ा थी
पर अब बंदिशों की 
गुंजाइशें कहा हैं

तू तब ठुकराए जाने के 
ख़ौफ़ में था
अब तो खौफ़ की गुंजाइशें 
कहा है

तू बात रख 
मन में मलाल मत रख
कभी तो तेरी दरख्वास्त 
मंजूर होगी

कई थे जो बस 
दिल में इश्क़ को जिंदा रखते थे
तुझे तो फिर भी काफी
नजदीकियां हासिल थी

वो दिन

वो दिन अब बस यादों के धुमिल गलियारों में
कही खो से रहे हैं
कुछ सिसकियां से कुछ बह के सूख गये
आंसुओ की लकीरों से
बस सिमटे हुए धीरे धीरे खत्म हो रहे है
लम्हों की खूबसूरत कड़ियों से बने चलचित्र मानिंद
रंगों के उड़ जाने की बाट जोह रहे हैं

फिर कब ठंडी हवा के सर्द झोंको से ठिठुरती
रात में धुएं उड़ाते उनको देखेंगे
फिर कब समुद्री हवा में घुली नमकीन
तासीर को बेपरवाह चखेंगे
फिर कब अलसाई सुबह में हल्की भूख
को कुछ बचा खाकर मिटायेंगे

कब हाथों में बिना झिझक मासूम चेहरे को
भर पाएंगे
एक हल्के छूने के एहसास से हुई सिरहन
को फिर महसूस कर पाएंगे

दिन तो बस कट ही रहे हैं की सब पहले 
जैसा हो जाये
इस खयाल को दिल में सम्हाले
अब कितने दिन और काटे जाएंगे

वो फिर

फिर ऐसे ही 
खयालो के झुरमुटों से 
तेरा चेहरा नजर आए

वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है

वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां 
मचल जाती है

कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ

भर लिया हैं चेहरे को 
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
 
थोड़ी सहम गई हैं 
ठंडे हाथ गुनगुने गालो 
को लगते ही

आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर 
कोहरा पिघला रही हैं

होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं

कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं

हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं

वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है

फिर ऐसे ही

फिर ऐसे ही 
खयालो के झुरमुटों से 
तेरा चेहरा नजर आए

वो बोलती आंखे
वो होंठो पे उछलती हँसी
कुहासे मैं भी साफ दिखती है

वो हल्की हवा के साथ
माथे पर बाल बिखर आते हैं
हटाने को कुछ उंगलियां 
मचल जाती है

कोहरे की ओट में कुछ
पानी की बूंदे गालो पे उभरी हैं
ठंडे हाथों से समेट लेता हूँ

भर लिया हैं चेहरे को 
हथेलियों में
कोहरा गहरा हो चला हैं
 
थोड़ी सहम गई हैं 
ठंडे हाथ गुनगुने गालो 
को लगते ही

आंखे अधखुली हैं
थोडी बंद हो रही हैं
साँसे गर्म टकरा कर 
कोहरा पिघला रही हैं

होंठो को बांधना है
सुर्ख नही कुछ कम हैं
पर जल रहे हैं

कोहरा ठहर कर
क्या देख रहा हैं

हल्की ठंड थोड़ी बढ़ी हैं
सुर्ख रंग थोड़ा जमा है
आंख अभी पूरी बंद हैं

वो हथेलियां अब खाली हैं
वह चेहरा नही हैं
झुरमुटों में कुछ हलचल है
अब बस घना कोहरा बचा है