Friday, December 2, 2022

नादान मेरे यार

कितने नादान मेरे यार है 
बेखबर से 
कोई आके उनका 
दिल चुरा गया

वो सोचते है अब
दिल कही लगता
क्यो नही

ये सोचते
जी हमारा घबराए
उन्हें पता भी हैं
उन्हें इश्क हैं

इस इश्क़ में 
कई फना हो गये
इश्क शौक
महंगा हैं

ऐसे ही

Raat lambee ho gayi intejaar kee
Ab lagta nahi jawab aayega
So gayee thak ke ab hasrate bhee
Bas dil ka sona baki hai

किसी कोने में

खड़ा कही किसी कोने से 
में बस देखता रहा

ना थी समझ ना था कुछ अलग
बस भीड़ में भीड़ बना रहा में

कई साल तो आगे जाने की जदोजहद रही
बस ठेलता रहा और घसीटता रहा

जब कुछ होश सा थोड़ा सा बढ़ा
तो खुले आकाश में खड़ा में रहा

तब से अबतक उतार चढ़ाव चलते रहे
जो मिला उसे अपना समझता रहा

तब जो रह गया जो न मिल पाया
तब जो में न कह पाया

अब थोड़ी हिम्मत जुटा लेता हूँ
कुछ अपने मन की भी सुन लेता हूँ

कुछ अपने मन की सुना लेता हूँ
बस थोड़ी हिम्मत जुटा लेता हूँ

Tuesday, September 7, 2021

तुम्हारे खयाल

तुम्हारे खयाल है कि सोने नही देते
यूँ बिस्तर पर पड़े बस इधर उधर करवटे बदलते हैं
इंतेजार की जिद पकड़ लेते हैं
पर तेरे मिलने का कोई वादा तो नही था।

हर रोज ये दिल बस 
धड़कता ही रहता है
उधेड़बुन के दरिया में डूबा रहता हैं
बस तुझे ही तुझे ढूंढता रहता हैं

तूने कभी कोई इशारा नही किया
अपनी दुनिया में मुझे कोई सहारा न दिया
पर बावलो सा पता नही क्या सोच लेता हैं
दिल ही तो हैं कुछ ज्यादा ही सोच लेता है

ये कैसी कश्मकश में सब फसे हुऐ हैं
में तुझमे तू किसी में उलझे हुए हैं
जो हैं पास उसका इल्म न हैं
जो दूर हैं वो इन सबसे अनजान हैं

डूबते दिन गये शाम भी ढलती गई
रात में भी अब वही हो रहा है
ख़्वाबों को खुली आंखों से 
देखने का जुनून जारी है

खयालो को क्या कहकर समझाए
अब कोई तो उनको बताए
यू ही ना घुटने को छोड़ मुझे
कुछ जादू सा कर की सब हकीकत हो जाये

Monday, August 2, 2021

वो कहते थे

वो कहते थे हमसे की बात बिना करे
दिल को सकून नही मिलता
अभी कुछ दिनों से
कुछ बोल भी नही

एक पल की गलती 
एक गलत लफ्ज़ 
यूँ ही तोड़ देता हैं 
बातों के सिलसिले

पता नही तेरा हाल क्या है
पर में तो बुझा बुझा ही रहा
लगता तो हैं तेरा हाल भी दुरुस्त न होगा
पर ये मेरा अंदाजा ही है

कुछ वक़्त पे छोड़ दे 
कुछ हालातों पे
हर बार तेरे एतबार का
 क़ाबिल नही हूँ मैं

टुकड़े टुकड़े गुफ्तगू

ऐसे टुकड़े टूकड़े में बात का 
क्या मुक़ाम आया हैं
कहा गये वो दिन जब अल्फ़ाज़ ज्यादा थे
और वक्त कम

कुछ वक्त ही अजीब सा बदल गया
लम्हो को तरस गये की दिल की कहे
भागते रहे मंजिल का ना पता
जब रुके तो कितने दूर आ गये

इस दौड़ में तुझको भूले नही
पर चाह के भी तेरे साथ न रहे
तुझे जब चाहिये होगा सर रखने को कंधा
हम पास तेरे आ ना सके

अब रुके हुऐ तो हैं पर अकेले हैं
बस तेरी आस में दूर खड़े है
कोई दुआ तो लगे की तुझे लगे
की अब भी हम वही हैं जो थे

रोज तेरे साथ की झूठी चाह लिये
घूम आते हैं तेरे ठिकाने पर
कुछ वक़्त गुज़ार के चले आते है
खाली अरमानों की आह लिये

ना जाने कब वक़्त बदलेगा
तुझे देखने छूने और गुफ्तगू का समां होगा
यकीन तो यही है की सब दुरुस्त होगा
पर डरते हैं की अगर सब बदल गया

वक़्त का कहर

ये वक़्त भी क्या कहर कर गया
ना तुझे भूलने दिया न मिला ही सका

वो दिन थे जब तेरी आँखों से नशा करते थे
अब तो तेरी आवाज भी कीमती हो गई

कब आखरी बार तुझे बाहों में लिया था
कब तेरी खुशबू का इत्र सजाया था

अब तो भीनी सी ही याद आती है
तूने सपनो में आने की भी बंदिश कर दी