खड़ा कही किसी कोने से
में बस देखता रहा
ना थी समझ ना था कुछ अलग
बस भीड़ में भीड़ बना रहा में
कई साल तो आगे जाने की जदोजहद रही
बस ठेलता रहा और घसीटता रहा
जब कुछ होश सा थोड़ा सा बढ़ा
तो खुले आकाश में खड़ा में रहा
तब से अबतक उतार चढ़ाव चलते रहे
जो मिला उसे अपना समझता रहा
तब जो रह गया जो न मिल पाया
तब जो में न कह पाया
अब थोड़ी हिम्मत जुटा लेता हूँ
कुछ अपने मन की भी सुन लेता हूँ
कुछ अपने मन की सुना लेता हूँ
बस थोड़ी हिम्मत जुटा लेता हूँ