उड़ने भी दे और रोक भी ले
गिरने भी दे और थाम भी ले
जो सब करने दे और कुछ ना भी
जो समझे मुझे और समझे भी न
इस कश्मकश में कुछ मिलता भी हैं
इस कश्मकश में कुछ खोता भी हैं
जो ना मुझे मिल पाए तो भी क्या
सपने हैं सच हो भी जाये तो क्या
अधूरी हसरतों के धागों से
बुन लो तुम अपनी दुनिया को
कुछ कम भी हैं तो क्या हुआ
दुनिया तुम्हारी तुम ही तो हो
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