Thursday, June 25, 2020

हसरतों के धागे

उड़ने भी दे और रोक भी ले
गिरने भी दे और थाम भी ले
जो सब करने दे और कुछ ना भी 
जो समझे मुझे और समझे भी न

इस कश्मकश में कुछ मिलता भी हैं
इस कश्मकश में कुछ खोता भी हैं
जो ना मुझे मिल पाए तो भी क्या
सपने हैं सच हो भी जाये तो क्या

अधूरी हसरतों के धागों से
बुन लो तुम अपनी दुनिया को
कुछ कम भी हैं तो क्या हुआ
दुनिया तुम्हारी तुम ही तो हो