Sunday, July 19, 2020

विपदा भारी

विपदा भारी बड़ी महामारी
जन जन पर आन पड़ी
त्रस्त हुआ मन मन जन का
व्याकुल हो त्राहिमाम करा

नही ज्ञात भूतकाल में
कब मानुष यूं बेहाल हुआ
रस छोड़ सार्वजनिक जीवन के
घर में बंद व्यग्र हुआ

दिवस बीतते वर्ष लगे
सुदबुध खोये निस्तेज हुआ
उगते ढलते सूर्य प्रकाश से
किंचित मात्र न संतोष मिला

Thursday, June 25, 2020

हसरतों के धागे

उड़ने भी दे और रोक भी ले
गिरने भी दे और थाम भी ले
जो सब करने दे और कुछ ना भी 
जो समझे मुझे और समझे भी न

इस कश्मकश में कुछ मिलता भी हैं
इस कश्मकश में कुछ खोता भी हैं
जो ना मुझे मिल पाए तो भी क्या
सपने हैं सच हो भी जाये तो क्या

अधूरी हसरतों के धागों से
बुन लो तुम अपनी दुनिया को
कुछ कम भी हैं तो क्या हुआ
दुनिया तुम्हारी तुम ही तो हो