विपदा भारी बड़ी महामारी
जन जन पर आन पड़ी
त्रस्त हुआ मन मन जन का
व्याकुल हो त्राहिमाम करा
नही ज्ञात भूतकाल में
कब मानुष यूं बेहाल हुआ
रस छोड़ सार्वजनिक जीवन के
घर में बंद व्यग्र हुआ
दिवस बीतते वर्ष लगे
सुदबुध खोये निस्तेज हुआ
उगते ढलते सूर्य प्रकाश से
किंचित मात्र न संतोष मिला